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क्रत्वा॒ दा अ॑स्तु॒ श्रेष्ठो॒ऽद्य त्वा॑ व॒न्वन्त्सु॒रेक्णाः॑। मर्त॑ आनाश सुवृ॒क्तिम् ॥२६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kratvā dā astu śreṣṭho dya tvā vanvan surekṇāḥ | marta ānāśa suvṛktim ||

पद पाठ

क्रत्वा॑। दाः। अ॒स्तु॒। श्रेष्ठः॑। अ॒द्य। त्वा॒। व॒न्वन्। सु॒ऽरेक्णाः॑। मर्तः॑। आ॒ना॒श॒। सु॒ऽवृ॒क्तिम् ॥२६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:26 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:26


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रेष्ठः) धर्मयुक्त गुण कर्म्म और स्वभाव से अतिशय युक्त (सुरेक्णाः) सुन्दर धनवाला (मर्त्तः) मनुष्य (अद्य) आज (क्रत्वा) बुद्धि वा कर्म्म से (सुवृक्तिम्) उत्तम प्रकार जाते हैं, दुःख जिसके द्वार उसको (आनाश) व्याप्त हो और (त्वा) आप का (वन्वन्) सेवन करता हुआ सुखी (अस्तु) हो और आप विद्या के (दाः) देनेवाले होओ ॥२६॥
भावार्थभाषाः - वे ही उत्तम जन गणनीय हैं, जो विज्ञान को देते हैं ॥२६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विदुषा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

श्रेष्ठः सुरेक्णा मर्त्तोऽद्य क्रत्वा सुवृक्तिमानाश त्वा वन्वन् सुख्यस्तु त्वं विद्यां दाः ॥२६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्म्मणा वा (दाः) यो ददाति (अस्तु) (श्रेष्ठः) धर्म्यगुणकर्म्मस्वभावातिशययुक्तः (अद्य) (त्वा) त्वाम् (वन्वन्) सम्भजन् (सुरेक्णाः) शोभनं रेक्णः धनं यस्य सः। रेक्ण इति धननाम। (निघं०२.१०) (मर्त्तः) मनुष्यः (आनाश) व्याप्नुयात् (सुवृक्तिम्) सुष्ठु व्रजन्ति दुःखानि यया ताम् ॥२६॥
भावार्थभाषाः - त एवोत्तमा गणनीया ये विज्ञानं प्रयच्छन्ति ॥२६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान विज्ञान शिकवितात ते माननीय समजले जातात. ॥ २६ ॥