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वस्वी॑ ते अग्ने॒ संदृ॑ष्टिरिषय॒ते मर्त्या॑य। ऊर्जो॑ नपाद॒मृत॑स्य ॥२५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vasvī te agne saṁdṛṣṭir iṣayate martyāya | ūrjo napād amṛtasya ||

पद पाठ

वस्वी॑। ते॒। अ॒ग्ने॒। सम्ऽदृ॑ष्टिः। इ॒ष॒ऽय॒ते। मर्त्या॑य। ऊर्जः॑। न॒पा॒त्। अ॒मृत॑स्य ॥२५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:25 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:25


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उत्तम जन का व्यवहार वा सङ्ग निष्फल नहीं होता, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान (ते) आपकी (वस्वी) पृथिवी आदि वसुसम्बन्धिनी (सन्दृष्टिः) उत्तम प्रकार देखते जिससे वह दृष्टि (इषयते) अन्न वा विज्ञान की कामना करते हुए (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (अमृतस्य) नाशरहित और (ऊर्जः) बल आदि युक्त की (नपात्) नहीं गिरनेवाली होती है ॥२५॥
भावार्थभाषाः - जिस विद्वान् का विद्यादर्शन-विद्या निष्फल नहीं होता और जिससे पढ़कर विद्यार्थी जन विद्वान् होते हैं, उसका सदा सत्कार करो ॥२५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उत्तमस्य व्यवहारः सङ्गो वा निष्फलो न भवतीत्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ते वस्वी सन्दृष्टिरिषयते मर्त्यायाऽमृतस्योर्जो नपाद्भवति ॥२५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वस्वी) पृथिव्यादिवसुसम्बन्धिनी (ते) तव (अग्ने) पावक इव (सन्दृष्टिः) सम्यक् पश्यन्ति यथा सा (इषयते) इषमन्नं विज्ञान वां कामयमानाय (मर्त्याय) मनुष्याय (ऊर्जः) बलादियुक्तस्य (नपात्) या न पतति (अमृतस्य) नाशरहितस्य ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - यस्य विदुषो विद्यादर्शनं निष्फलं न जायते, यस्मादधीत्य विद्वांसो भवन्ति तं सदा सत्कुरुत ॥२५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या विद्वानांची विद्या निष्फळ होत नाही व ज्याच्याजवळ शिकून विद्यार्थी विद्वान होतात त्यांचा सत्कार करा. ॥ २५ ॥