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हि यो मानु॑षा यु॒गा सीद॒द्धोता॑ क॒विक्र॑तुः। दू॒तश्च॑ हव्य॒वाह॑नः ॥२३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa hi yo mānuṣā yugā sīdad dhotā kavikratuḥ | dūtaś ca havyavāhanaḥ ||

पद पाठ

सः। हि। यः। मानु॑षा। यु॒गा। सीद॑त्। होता॑। क॒विऽक्र॑तुः। दू॒तः। च॒। ह॒व्य॒ऽवाह॑नः ॥२३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:23 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:23


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह अग्नि कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (हव्यवाहनः) हनव किये गये द्रव्यों को प्राप्त कराने पहुँचानेवाला और (दूतः) दूतवत् वर्त्तमान (च) भी अग्नि (मानुषा) मनुष्य-सम्बन्धी (युगा) वर्ष वा वर्षसमुदायों को (सीदत्) प्राप्त होता है (सः) (हि) वही (होता) दाता (कविक्रतुः) बड़ा विद्वान् जैसे वैसे कार्य का साधक होता है ॥२३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अग्नि धार्मिक और विद्वानों के कार्य्यों का करनेवाला होता है, उसको विद्वान् जन कार्य्यों की सिद्धि के लिये सम्प्रयुक्त करें ॥२३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सोऽग्निः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

यो हव्यवाहनो दूतश्चाग्निर्मानुषा युगा सीदत् स हि होता कविक्रतुरिव कार्य्यसाधको भवति ॥२३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (हि) यतः (यः) (मानुषा) मनुष्यसम्बन्धीनि (युगा) युगानि वर्षाणि वर्षसमुदितानि वा (सीदत्) सीदति (होता) दाता (कविक्रतुः) महान् विद्वान् (दूतः) (च) (हव्यवाहनः) यो हव्यानि हुतानि द्रव्याणि वहति ॥२३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योऽग्निर्धार्मिकविद्वत्कार्य्यकरो भवति स हि विद्वद्भिः कार्य्यसिद्धये सम्प्रयोक्तव्यः ॥२३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो अग्नी धार्मिकाचे व विद्वानांचे कार्य करतो, त्याला विद्वान लोकांनी कार्याच्या सिद्धीसाठी प्रयुक्त करावे. ॥ २३ ॥