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स नो॑ म॒न्द्राभि॑रध्व॒रे जि॒ह्वाभि॑र्यजा म॒हः। आ दे॒वान्व॑क्षि॒ यक्षि॑ च ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no mandrābhir adhvare jihvābhir yajā mahaḥ | ā devān vakṣi yakṣi ca ||

पद पाठ

सः। नः॒। म॒न्द्राभिः॑। अ॒ध्व॒रे। जि॒ह्वाभिः॑। य॒ज॒। म॒हः। आ। दे॒वान्। व॒क्षि॒। यक्षि॑। च॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! अग्नि के सदृश तेजस्वी (सः) वह आप (अध्वरे) सब प्रकार अनुष्ठान करने योग्य धर्म्मयुक्त व्यवहार में (मन्द्राभिः) आनन्द करनेवाली (जिह्वाभिः) विद्या और विनय से युक्त वाणियों से (नः) हम लोगों को (यजा) प्राप्त कराइये और (महः) बड़े अथवा सत्कार करने योग्यों को और (देवान्) श्रेष्ठ गुणों वा विद्वानों को (आ, वक्षि) प्राप्त कराइये और सब को (यक्षि, च) भी प्राप्त कराइये ॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् जन विद्या की प्राप्ति के लिये सब को सदा उपदेश देवें, जिससे श्रेष्ठ गुणोंवाले मनुष्य होवें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वान् किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन्नग्ने ! स त्वमध्वरे मन्द्राभिर्जिह्वाभिर्नोऽस्मान् यजा। महो देवानाऽऽवक्षि सर्वान् यक्षि च ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (नः) अस्मान् (मन्द्राभिः) आनन्दकारिकाभिः (अध्वरे) सर्वथाऽनुष्ठातव्ये धर्म्ये व्यवहारे (जिह्वाभिः) विद्याविनययुक्ताभिर्वाग्भिः। जिह्वेति वाङ्नाम। (निघं०१.१२) (यजा) सङ्गमय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (महः) महतः सत्कर्त्तव्यान् वा (आ) (देवान्) दिव्यान् गुणान् विदुषो वा (वक्षि) वह (यक्षि) सङ्गमय (च) ॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वांसो विद्याप्राप्तये सर्वान् सदोपदिशेयुर्येन प्राप्तदिव्यगुणा मनुष्या भवेयुः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोकांनी विद्याप्राप्तीसाठी सर्वांना सदैव उपदेश द्यावा. ज्यामुळे माणसे श्रेष्ठ गुणांची व्हावीत. ॥ २ ॥