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त्वम॑ग्ने य॒ज्ञानां॒ होता॒ विश्वे॑षां हि॒तः। दे॒वेभि॒र्मानु॑षे॒ जने॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam agne yajñānāṁ hotā viśveṣāṁ hitaḥ | devebhir mānuṣe jane ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। अ॒ग्ने॒। य॒ज्ञाना॑म्। होता॑। विश्वे॑षाम्। हि॒तः। दे॒वेभिः॑। मानु॑षे। जने॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अड़तालीस ऋचावाले सोलहवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) जगदीश्वर ! जिस कारण से (त्वम्) आप (यज्ञानाम्) प्राप्त होने योग्य व्यवहारों के (होता) देनेवाले और (विश्वेषाम्) सब के (हितः) हितकारी हो इससे (देवेभिः) विद्वानों के साथ (मानुषे) मनुष्य-सम्बन्धी (जने) मनुष्य में प्रेरणा करनेवाले होओ ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे ईश्वर सब का हितकारी और सम्पूर्ण सुखों का देनेवाला तथा विद्वानों के सङ्ग से जानने योग्य है, वैसे आप लोग भी अनुष्ठान करो ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वान् किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यतस्त्वं यज्ञानां होता विश्वेषां हितोऽसि तस्माद्देवेभिर्मानुषे जनेप्रेरको भव ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (अग्ने) जगदीश्वर (यज्ञानाम्) सङ्गन्तव्यानां व्यवहाराणाम् (होता) दाता (विश्वेषाम्) सर्वेषाम् (हितः) हितकारी (देवेभिः) विद्वद्भिः सह (मानुषे) मनुष्याणामस्मिन् (जने) मनुष्ये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यथेश्वरः सर्वेषां हितकारी सकलसुखदाता विद्वत्सङ्गेन ज्ञातव्योऽस्ति तथा यूयमप्यनुतिष्ठत ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी, विद्वान व ईश्वराचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! जसा ईश्वर सर्वांचा हितकारक, सकल सुखदाता विद्वानांच्या संगतीने जाणण्यायोग्य आहे तसे तुम्हीही अनुष्ठान करा. ॥ १ ॥