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समि॑द्धम॒ग्निं स॒मिधा॑ गि॒रा गृ॑णे॒ शुचिं॑ पाव॒कं पु॒रो अ॑ध्व॒रे ध्रु॒वम्। विप्रं॒ होता॑रं पुरु॒वार॑म॒द्रुहं॑ क॒विं सु॒म्नैरी॑महे जा॒तवे॑दसम् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samiddham agniṁ samidhā girā gṛṇe śucim pāvakam puro adhvare dhruvam | vipraṁ hotāram puruvāram adruhaṁ kaviṁ sumnair īmahe jātavedasam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्ऽइ॑द्धम्। अ॒ग्निम्। स॒म्ऽइधा॑। गि॒रा। गृ॒णे॒। शुचि॑म्। पा॒व॒कम्। पु॒रः। अ॒ध्व॒रे। ध्रु॒वम्। विप्र॑म्। होता॑रम्। पु॒रु॒ऽवार॑म्। अ॒द्रुह॑म्। क॒विम्। सु॒म्नैः। ई॒म॒हे॒। जा॒तऽवे॑दसम् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:15» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (समिधा) इन्धन के समान पदार्थ से (समिद्धम्) प्रकाशित हुए (अग्निम्) अग्नि को जैसे वैसे वर्त्तमान को (अध्वरे) अहिंसारूप यज्ञ में (ध्रुवम्) बहुत विद्वानों से सत्कार किये गये (अद्रुहम्) द्रोह से रहित (जातवेदसम्) प्रकट हुई विद्या जिसकी ऐसे (विप्रम्) विद्या और विनय से बुद्धिमान् को (गिरा) वाणी से (पुरः) आगे (गृणे) स्तुति करता हूँ (कविम्) पूर्ण विद्या से युक्त को जैसे वैसे (सुम्नैः) सुखों से हम लोग (ईमहे) याचना करें, वैसे आप लोग भी याचना करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग सत्य के प्रकाशक विद्वानों से विद्या की याचना करो तथा इस विद्या को प्राप्त होकर अन्यों को देओ ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! समिधा समिद्धमग्निमिव वर्त्तमानमध्वरे ध्रुवं शुचिं पावकं होतारं पुरुवारमद्रुहं जातवेदसं विप्रं गिरा पुरो गृणे कविमिव सुम्नैर्वयमीमहे तथा यूयमपि याचध्वम् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (समिद्धम्) देदीप्यमानम् (अग्निम्) (समिधा) इन्धनेनेव (गिरा) वाण्या (गृणे) (शुचिम्) पवित्रम् (पावकम्) पवित्रकर्त्तारम् (पुरः) पुरस्तात् (अध्वरे) अहिंसामये यज्ञे (ध्रुवम्) निश्चलम् (विप्रम्) विद्याविनयाभ्यां धीमन्तम् (होतारम्) (पुरुवारम्) पुरुभिर्बहुभिर्विद्वद्भिः सत्कृतम् (अद्रुहम्) द्रोहरहितम् (कविम्) पूर्णविद्यम् (सुम्नैः) सुखैः (ईमहे) याचामहे (जातवेदसम्) जातविद्यम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं सत्यप्रकाशकेभ्यो विद्वद्भ्यो विद्यां याचध्वम्, एतां प्राप्यान्येभ्यो दत्त ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही सत्यवादी विद्वानांजवळ विद्येची याचना करा व विद्या प्राप्त करून इतरांना द्या. ॥ ७ ॥