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अग्ने॒ विश्वे॑भिः स्वनीक दे॒वैरूर्णा॑वन्तं प्रथ॒मः सी॑द॒ योनि॑म्। कु॒ला॒यिनं॑ घृ॒तव॑न्तं सवि॒त्रे य॒ज्ञं न॑य॒ यज॑मानाय सा॒धु ॥१६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne viśvebhiḥ svanīka devair ūrṇāvantam prathamaḥ sīda yonim | kulāyinaṁ ghṛtavantaṁ savitre yajñaṁ naya yajamānāya sādhu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। विश्वे॑भिः। सु॒ऽअ॒नी॒क॒। दे॒वैः। ऊर्णा॑ऽवन्तम्। प्र॒थ॒मः। सी॒द॒। योनि॑म्। कु॒ला॒यिन॑म्। घृ॒तऽव॑न्तम्। स॒वि॒त्रे। य॒ज्ञम्। न॒य॒। यज॑मानाय। सा॒धु ॥१६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:15» मन्त्र:16 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (स्वनीक) सुन्दर सेनावाले (अग्ने) विद्वन् राजन् ! (प्रथमः) प्रसिद्ध आप (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (देवैः) विद्वानों वा वीर पुरुषों के साथ (ऊर्णावन्तम्) बहुत ऊर्णा के वस्त्रों से युक्त (योनिम्) गृह में (सीद) वर्त्तमान हो (सवित्रे) संसार को उत्पन्न करने और (यजमानाय) पदार्थों के मिलानेरूप विद्या को जाननेवाले के लिये (कुलायिनम्) गृह आदि सामग्री से और (घृतवन्तम्) बहुत घृत आदि पदार्थों से युक्त (यज्ञम्) सङ्गतिस्वरूप व्यवहार को साधु उत्तम प्रकार (नय) प्राप्त कराइये ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्यायुक्त राजजनो ! आप लोग विद्वानों के सहाय से न्याय के गृहों में ठहर के न्याय करिये और सब मनुष्यों को न्यायमार्ग पर चलाइये, जिससे सब श्रेष्ठ मार्ग में स्थित होकर परोपकारी होवें ॥१६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे स्वनीकाग्ने राजन् ! प्रथमस्त्वं विश्वेभिर्देवैस्सहोर्णावन्तं योनिं सीद सवित्रे यजमानाय कुलायिनं घृतवन्तं यज्ञं साधु नय ॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (विश्वेभिः) सर्वैः (स्वनीक) शोभनान्यनीकानि सैन्यानि यस्य तत्सम्बुद्धौ (देवैः) विद्वद्भिर्वीरैर्वा (ऊर्णावन्तम्) बहूर्णादिवस्त्रयुक्तम् (प्रथमः) प्रख्यातः (सीद) (योनिम्) गृहम् (कुलायिनम्) गृहादिसामग्रीयुक्तम् (घृतवन्तम्) बहुघृतादिवन्तम् (सवित्रे) जगदुत्पादकाय (यज्ञम्) सङ्गतिमयं व्यवहारम् (नय) प्रापय (यजमानाय) सङ्गतिकरणविद्याविदे (साधु) ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! राजजना यूयं विद्वत्सहायेन न्यायगृहेषु स्थित्वा न्यायं कुरुत सर्वान् मनुष्यान् न्यायपथं नयत येन सर्वे सन्मार्गस्थाः सन्तः परोपकारिणः स्युः ॥१६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्यायुक्त राजजनांनो ! तुम्ही विद्वानांच्या साह्याने न्यायालयात न्याय करा व सर्व माणसांना न्यायमार्गाने चालवा. ज्यामुळे सर्वजण श्रेष्ठ मार्गात स्थित राहून परोपकारी होतील. ॥ १६ ॥