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अ॒ग्निर्होता॑ गृ॒हप॑तिः॒ स राजा॒ विश्वा॑ वेद॒ जनि॑मा जा॒तवे॑दाः। दे॒वाना॑मु॒त यो मर्त्या॑नां॒ यजि॑ष्ठः॒ स प्र य॑जतामृ॒तावा॑ ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnir hotā gṛhapatiḥ sa rājā viśvā veda janimā jātavedāḥ | devānām uta yo martyānāṁ yajiṣṭhaḥ sa pra yajatām ṛtāvā ||

पद पाठ

अ॒ग्निः। होता॑। गृ॒हऽप॑तिः। सः। राजा॑। विश्वा॑। वे॒द॒। जनि॑म। जा॒तऽवे॑दाः। दे॒वाना॑म्। उ॒त। यः। मर्त्या॑नाम्। यजि॑ष्ठः। सः। प्र। य॒ज॒ता॒म्। ऋ॒तऽवा॑ ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:15» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (यः) जो (गृहपतिः) गृह का पालक जैसे वैसे ब्रह्माण्ड का प्रबन्ध करने (होता) धारण करने तथा (जातवेदाः) प्रकट हुए पदार्थों को जाननेवाला और सब का (राजा) न्याय करने तथा (ऋतावा) सत्य और असत्य का विभाग करने (यजिष्ठः) अतिशय यज्ञ करने वा पदार्थों का मेल करनेवाला (अग्निः) सब का प्रकाशक (देवानाम्) दिव्य पदार्थों वा विद्वानों के मध्य में (उत) (मर्त्यानाम्) मनुष्यों के (विश्वा) सम्पूर्ण (जनिमा) जन्मों को (वेद) जानता है (सः) वह हम लोगों को (प्र, यजताम्) अत्यन्त प्राप्त करावे (सः) वह हम लोगों का राजा होवे, ऐसा हम लोग निश्चय करते हैं, वैसे आप लोग भी जानो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सम्पूर्ण जगत् और जीवों के कर्म्मों को जानकर फलों को देता है, वही सत्य राजा है, ऐसा जानना चाहिये ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यो गृहपतिरिव होता जातवेदाः सर्वस्य राजा ऋतावा यजिष्ठोऽग्निर्देवानामुत मर्त्यानां विश्वा जनिमा वेद सोऽस्मान् प्र यजतां सोऽस्माकं राजास्त्विति वयं निश्चिनुमस्तथा यूयमप्यवगच्छत ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) सर्वप्रकाशकः (होता) धर्त्ता (गृहपतिः) गृहस्य पालक इव ब्रह्माण्डस्य प्रबन्धकर्त्ता (सः) (राजा) सर्वेषां न्यायकर्त्ता (विश्वा) सर्वाणि (वेद) जानाति (जनिमा) जन्मानि (जातवेदाः) यो जातान्त्सर्वान् वेत्ति सः (देवानाम्) दिव्यानां पदार्थानां विदुषां वा मध्ये (उत) अपि (यः) (मर्त्यानाम्) सङ्गमयतु (ऋतावा) सत्यासत्ययोर्विभाजकः ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! योऽखिलस्य जगतो जीवानां च कर्म्माणि विदित्वा फलानि प्रयच्छति स एव सत्यो राजास्तीति वेदितव्यम् ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो संपूर्ण जग व जीवांचे कर्म जाणून फळ देतो तोच खरा राजा आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥ १३ ॥