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तम॑ग्ने पास्यु॒त तं पि॑पर्षि॒ यस्त॒ आन॑ट्क॒वये॑ शूर धी॒तिम्। य॒ज्ञस्य॑ वा॒ निशि॑तिं॒ वोदि॑तिं वा॒ तमित्पृ॑णक्षि॒ शव॑सो॒त रा॒या ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam agne pāsy uta tam piparṣi yas ta ānaṭ kavaye śūra dhītim | yajñasya vā niśitiṁ voditiṁ vā tam it pṛṇakṣi śavasota rāyā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। अ॒ग्ने॒। पा॒सि॒। उ॒त। तम्। पि॒प॒र्षि॒। यः। ते॒। आन॑ट्। क॒वये॑। शू॒र॒। धी॒तिम्। य॒ज्ञस्य॑। वा॒। निऽशि॑तिम्। वा॒। उत्ऽइ॑तिम्। वा॒। तम्। इत्। पृ॒ण॒क्षि॒। शव॑सा। उ॒त। रा॒या ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:15» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) भयरहित दुष्ट दोषों के विनाश करने और (अग्ने) अविद्यारूप अन्धकार के नाश करनेवाले (यः) जो (ते) आपकी आज्ञा को (आनट्) व्याप्त होता है उस (कवये) विद्वान् के लिये (धीतिम्) धारणा को देते हो (तम्) उसकी (पासि) रक्षा करते हो (उत) और (तम्) उसकी (पिपर्षि) पालना करते वा श्रेष्ठ गुणों से पूरित करते हो (वा) वा (यज्ञस्य) यज्ञ की (निशितिम्) अत्यन्त तीक्ष्णता का वा (उदितिम्) उदय का (वा) वा (पृणक्षि) सम्बन्ध करते हो (तम्) उसका (वा) वा (शवसा) बल से (उत) और (राया) धन से भी सम्बन्ध करते हो वह (इत्) ही आप उपासना करने योग्य हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो सत्यभाव से जगदीश्वर की उपासना करते हैं, उनकी ईश्वर सब प्रकार से रक्षा कर धर्म्मयुक्त गुण, कर्म और स्वभावों में प्रेरणा कर तथा शरीर और आत्मा का बल अच्छे प्रकार देकर मोक्ष को प्राप्त कराता है ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे शूराग्ने ! यस्त आज्ञामानट् तस्मै कवये धीतिं ददासि तं पास्युत तं पिपर्षि वा यज्ञस्य निशितिम् [उदितिम्] वा पृणक्षि तं वा शवसोत राया सह पृणक्षि स इद्भवानुपास्योऽस्ति ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (अग्ने) अविद्यान्धकारविनाशक (पासि) रक्षसि (उत) अपि (तम्) (पिपर्षि) पालयसि सद्गुणैः पूरयसि वा (यः) (ते) तव (आनट्) व्याप्नोति (कवये) विदुषे (शूर) निर्भय दुष्टदोषविनाशक (धीतिम्) धारणाम् (यज्ञस्य) (वा) (निशितिम्) नितरां तीक्ष्णताम् (वा) (उदितिम्) उदयम् (वा) (तम्) (इत्) एव (पृणक्षि) सम्बध्नासि (शवसा) बलेन (उत) अपि (राया) धनेन ॥११॥
भावार्थभाषाः - ये सत्यभावेन जगदीश्वरमुपासते तानीश्वरः सर्वतः संरक्ष्य धर्म्यगुणकर्म्मस्वभावेषु प्रेरयित्वा शरीरात्मबलं प्रदाय मोक्षं नयति ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सत्यभावनेने जगदीश्वराची उपासना करतात, ईश्वर त्यांचे सर्व प्रकारे रक्षण करून धर्मयुक्त गुण, कर्म, स्वभावात प्रेरणा देतो. शरीर व आत्म्याचे बल चांगल्या प्रकारे वाढवून मोक्ष प्राप्त करवितो. ॥ ११ ॥