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अ॒ग्निर्हि वि॒द्मना॑ नि॒दो दे॒वो मर्त॑मुरु॒ष्यति॑। स॒हावा॒ यस्यावृ॑तो र॒यिर्वाजे॒ष्ववृ॑तः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnir hi vidmanā nido devo martam uruṣyati | sahāvā yasyāvṛto rayir vājeṣv avṛtaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः। हि। वि॒द्मना॑। नि॒दः। दे॒वः। मर्त॑म्। उ॒रु॒ष्यति॑। स॒हऽवा॑। यस्य॑। अवृ॑तः। र॒यिः। वाजे॑षु। अवृ॑तः ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:14» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अवृतः) नहीं स्वीकार किया गया (सहावा) सहनेवाला (देवः) निरन्तर प्रकाशमान (अग्निः) अग्नि के सदृश पवित्रों से बढ़ा हुआ मुनि (मर्त्तम्) मनुष्य को (उरुष्यति) सेवता है उसको (हि) जिससे (विद्मना) ज्ञान से विशेष करके जानें और (यस्य) जिसके (वाजेषु) सङ्ग्रामों में (अवृतः) नहीं आच्छादित किया गया (रयिः) धन होता है, उससे (निदः) निन्दा करनेवालों का निवारण कीजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - सब पदार्थों को उत्पन्न करती हुई बिजुली को मनुष्य जानें, जिस विज्ञान से आग्नेयादि नामक अस्त्र सिद्ध होते हैं, उसका सब काल में खोज करो ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽवृतस्सहावादेवोऽग्निर्मर्त्तमुरुष्यति तं हि विद्मना विजानन्तु यस्य वाजेष्ववृतो रयिर्भवति तेन निदो निवारयन्तु ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) पावक इव पवित्रोपचितो मुनिः (हि) यतः (विद्मना) ज्ञानेन (निदः) निन्दकान् (देवः) देदीप्यमानः (मर्त्तम्) मनुष्यम् (उरुष्यति) सेवते (सहावा) यः सहते सः (यस्य) (अवृतः) अस्वीकृतः (रयिः) धनम् (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (अवृतः) अनाच्छादितः ॥५॥
भावार्थभाषाः - सर्वान् पदार्थान्त्सवन्तीं विद्युतं मनुष्या जानन्तु यद्विज्ञानेनाग्नेयादीन्यस्त्राणि सिद्ध्यन्ति तत्सर्वदाऽन्विष्यध्वम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व पदार्थांना उत्पन्न करणाऱ्या विद्युतला जाणून माणसांनी अग्नेय इत्यादी अस्त्रे तयार करावीत व त्यात सदैव संशोधन करावे. ॥ ५ ॥