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व॒द्मा सू॑नो सहसो नो॒ विहा॑या॒ अग्ने॑ तो॒कं तन॑यं वा॒जिनो॑ दाः। विश्वा॑भिर्गी॒र्भिर॒भि पू॒र्तिम॑श्यां॒ मदे॑म श॒तहि॑माः सु॒वीराः॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vadmā sūno sahaso no vihāyā agne tokaṁ tanayaṁ vāji no dāḥ | viśvābhir gīrbhir abhi pūrtim aśyām madema śatahimāḥ suvīrāḥ ||

पद पाठ

व॒द्मा। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। नः॒। विऽहा॑याः। अग्ने॑। तो॒कम्। तन॑यम्। वा॒जि। नः॒। दाः॒। विश्वा॑भिः। गीः॒ऽभिः। अ॒भि। पू॒र्तिम्। अ॒श्या॒म्। मदे॑म। श॒तऽहि॑माः। सु॒ऽवीराः॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:13» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:15» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) बलिष्ठ के (सूनो) सन्तान (अग्ने) अग्नि के सदृश विद्वन् ! (विहायाः) बड़े (वद्मा) सत्य हित के उपदेष्टा आप (नः) हम को (विश्वाभिः) संपूर्ण (गीर्भिः) वाणियों से (वाजिनः) अन्न आदि युक्त के (तोकम्) वृद्धि करने और (तनयम्) सुख के बढ़ानेवाले के अपत्य को (दाः) दीजिये जिससे मैं (पूर्तिम्) पूर्णता को (अश्याम्) प्राप्त होऊँ और जिससे हम लोग (शतहिमाः) सौ वर्ष की अवस्था युक्त (सुवीराः) उत्तम वीरोंवाले (अभि, मदेम) सब ओर से आनन्द करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् जनो ! आप अध्यापन और उपदेश से सम्पूर्ण गृहस्थों के पुत्र और पुत्रियों को उत्तम प्रकार शिक्षित करके विद्या से सुखयुक्त करो, जिससे दीर्घ अवस्थावाले होकर ये सन्तान भी ऐसा ही आचरण करें ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि, विद्वान् और राजा के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तेरहवाँ सूक्त और पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सहसस्सूनोऽग्ने ! विहाया वद्मा त्वं नो विश्वाभिर्गीर्भिर्वाजिनस्तोकं तनयं दाः। येनाहं पूर्तिमश्यां यतो वयं शतहिमाः सुवीरा अभि मदेम ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वद्मा) सत्यहितोपदेष्टा (सूनो) अपत्य (सहसः) बलिष्ठस्य (नः) (विहायाः) महान्। विहायेति महन्नाम। (निघं०३.३) (अग्ने) पावकवद्विद्वन् (तोकम्) वर्धकम् (तनयम्) सुखविस्तारकमपत्यम् (वाजिनः) अन्नादियुक्तस्य (दाः) देहि (विश्वाभिः) समग्राभिः (गीर्भिः) वाग्भिः (अभि) सर्वतः (पूर्त्तिम्) (अश्याम्) प्राप्नुयाम् (मदेम) आनन्देम (शतहिमाः) शतायुषः (सुवीराः) उत्तमवीरवन्तः ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसोऽध्यापनोदेशाभ्यां सर्वेषां गृहस्थानां पुत्रान् पुत्रीश्च सुशिक्ष्य विद्यया सुखयुक्तान् कुर्वन्तु येन दीर्घायुषो भूत्वैतेऽप्येवमेवाऽऽचरेयुरिति ॥६॥ अत्राग्निविद्वद्राजगुणवर्णनादेतर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रयोदशं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! तुम्ही अध्यापन व उपदेश करून सर्व गृहस्थांच्या मुला-मुलींना विद्या शिकवून सुशिक्षित करा व सुखी करा. त्यामुळे ते दीर्घायुषी बनतील. संतानांनीही या प्रकारचे आचरण करावे. ॥ ६ ॥