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ता नृभ्य॒ आ सौ॑श्रव॒सा सु॒वीराग्ने॑ सूनो सहसः पु॒ष्यसे॑ धाः। कृ॒णोषि॒ यच्छव॑सा॒ भूरि॑ प॒श्वो वयो॒ वृका॑या॒रये॒ जसु॑रये ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā nṛbhya ā sauśravasā suvīrāgne sūno sahasaḥ puṣyase dhāḥ | kṛṇoṣi yac chavasā bhūri paśvo vayo vṛkāyāraye jasuraye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। नृऽभ्यः॑। आ। सौ॒श्र॒व॒सा। सु॒ऽवीरा॑। अग्ने॑। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। पु॒ष्यसे॑। धाः॒। कृ॒णोषि॑। यत्। शव॑सा। भूरि॑। प॒श्वः। वयः॑। वृका॑य। अ॒रये॑। जसु॑रये ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:13» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) बल के सम्बन्ध में (सूनो) बलवान् सन्तान (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान आप (यत्) जिस (शवसा) बल से (पुष्यसे) पुष्टि के लिये (नृभ्यः) नायक जनों से (सुवीरा) सुन्दर वीर जिनके लिये (ता) उन (सौश्रवसा) विद्वान् से सिद्ध किये नये कर्म्मों को (आ, धाः) धारण करते (पश्वः) पशु के (भूरि) बड़े (वयः) जीवन को (कृणोषि) करते हो और (जसुरये) हिंसा करनेवाले (वृकाय) वृक के सदृश वर्त्तमान (अरये) शत्रु के लिये दण्ड देते हो, इस कारण से आप न्यायकारी हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो राजा दुष्ट चोरादिकों का निवारण करके प्रजाओं को पुष्ट करता है, वह सब का हितैषी होता है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सहसस्सूनोऽग्ने ! त्वं यच्छवसा पुष्यसे नृभ्यस्सुवीरा ता सौश्रवसाऽऽधः पश्वो भूरि वयो कृणोषि जसुरये वृकायाऽरये दण्डं ददासि तस्मात्त्वं न्यायकार्य्यसि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तानि (नृभ्यः) नायकेभ्यः (आ) (सौश्रवसा) सुश्रवसा विदुषा निर्वृत्तानि (सुवीरा) शोभना वीरा येभ्यस्तानि (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (सूनो) बलवन् (सहसः) बलस्य (पुष्यसे) पुष्टये (धाः) दधासि (कृणोषि) (यत्) येन (शवसा) बलेन (भूरि) (पश्वः) पशोः (वयः) जीवनम् (वृकाय) वृकवद्वर्त्तमानाय (अरये) शत्रवे (जसुरये) हिंसकाय ॥५॥
भावार्थभाषाः - यो नृपो दुष्टान् चोरादीन्निवार्य्य प्रजाः पुष्टाः करोति स सर्वहितैषी वर्त्तते ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा दुष्ट चोरांचे निवारण करून प्रजेला पुष्ट करतो तो सर्वांचा हितैषी असतो. ॥ ५ ॥