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यस्ते॑ सूनो सहसो गी॒र्भिरु॒क्थैर्य॒ज्ञैर्मर्तो॒ निशि॑तिं वे॒द्यान॑ट्। विश्वं॒ स दे॑व॒ प्रति॒ वार॑मग्ने ध॒त्ते धा॒न्यं१॒॑ पत्य॑ते वस॒व्यैः॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas te sūno sahaso gīrbhir ukthair yajñair marto niśitiṁ vedyānaṭ | viśvaṁ sa deva prati vāram agne dhatte dhānyam patyate vasavyaiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। ते॒। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। गीः॒ऽभिः। उ॒क्थैः। य॒ज्ञैः। मर्तः॑। निऽशि॑तम्। वे॒द्या। आन॑ट्। विश्व॑म्। सः। दे॒व॒। प्रति॑। वार॑म्। अ॒ग्ने॒। ध॒त्ते। धा॒न्यम्। पत्य॑ते। व॒स॒व्यैः॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:13» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:15» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) बलिष्ठ के (सूनोः) पुत्र (देव) दीप्तिमान् (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वन् ! (ते) आप का (यः) जो (मर्त्तः) मनुष्य (गीर्भिः) वाणियों और (उक्थैः) कहने और जानने योग्य वेद के वचनों से और (वेद्या) सुख को प्राप्त करानेवाली वेदी से (निशितिम्) निरन्तर तीक्ष्णता के साथ (आनट्) व्याप्त होता है (वसव्यैः) धनों में प्रकट हुए पदार्थों के साथ (यज्ञैः) विद्वानों के सत्कारादिकों से (विश्वम्) समग्र पदार्थ को (धान्यम्) धान्य को (वा) वा (अरम्) पूर्ण (प्रति, धत्ते) धारण करता और (पत्यते) स्वामी के सदृश आचरण करता है (सः) वह आप से मेल करने योग्य है ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! पूर्ण ब्रह्मचर्य्य से शरीर और आत्मा के बल को पूर्ण करके सन्तानों की उत्पत्ति करो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे सहसस्सूनो देवाग्ने ! ते यो मर्त्तो गीर्भिरुक्थैर्वेद्या निशितिमानड् वसव्यैर्यज्ञैर्विश्वं धान्यं वारं प्रति धत्ते पत्यते स त्वया सङ्गन्तव्यः ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (ते) तव (सूनो) (सहसः) बलिष्ठस्य (गीर्भिः) वाग्भिः (उक्थैः) वक्तुमर्हैर्वेदितव्यैर्वेदवचनैः (यज्ञैः) विद्वत्सत्कारादिभिः (मर्त्तः) मनुष्यः (निशितिम्) नितरां तीक्ष्णम् (वेद्या) सुखप्रापिकया (आनट्) व्याप्नोति (विश्वम्) समग्रम् (सः) सुखप्रदाता (देव) (प्रति) (वा) (अरम्) अलम् (अग्ने) अग्निवद्वर्त्तमान विद्वन् (धत्ते) (धान्यम्) (पत्यते) पतिरिवाचरति (वसव्यैः) वसुषु धनेषु भवैः ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! पूर्णेन ब्रह्मचर्य्येण शरीरात्मबलमलं कृत्वा सन्तानोत्पत्तिं कुरुत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! पूर्ण ब्रह्मचर्यपूर्वक शरीर, आत्मा याचे बल वाढवून संतान उत्पन्न करा. ॥ ४ ॥