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स सत्प॑तिः॒ शव॑सा हन्ति वृ॒त्रमग्ने॒ विप्रो॒ वि प॒णेर्भ॑र्ति॒ वाज॑म्। यं त्वं प्र॑चेत ऋतजात रा॒या स॒जोषा॒ नप्त्रा॒पां हि॒नोषि॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa satpatiḥ śavasā hanti vṛtram agne vipro vi paṇer bharti vājam | yaṁ tvam praceta ṛtajāta rāyā sajoṣā naptrāpāṁ hinoṣi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। सत्ऽप॑तिः। शव॑सा। ह॒न्ति॒। वृ॒त्रम्। अ॒ग्ने॒। विप्रः॑। वि। प॒णेः। भ॒र्ति॒। वाज॑म्। यम्। त्वम्। प्र॒ऽचे॒तः॒। ऋ॒त॒ऽजा॒त॒। रा॒या। स॒ऽजोषाः॑। नप्त्रा॑। अ॒पाम्। हि॒नोषि॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:13» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋतजात) सत्य में प्रकट होनेवाले (प्रचेतः) अच्छे ज्ञान से युक्त (अग्ने) प्रकाशस्वरूप (विप्रः) बुद्धिमान् जन (त्वम्) आप जैसे (सत्पतिः) जल का पालक सूर्य्य (शवसा) बल से (वृत्रम्) मेघ का (हन्ति) नाश करता है और (पणेः) व्यवहारकर्त्ता के (वाजम्) अन्न वा विज्ञान को (वि, भर्ति) विशेष कर धारण करता है, वैसे (यम्) जिसको (सजोषाः) तुल्य प्रीति से सेवन करनेवाले आप (राया) धन से (अपाम्) जलों के (नप्त्रा) नहीं गिरनेवाले के साथ (हिनोषि) वृद्धि करे हो (सः) सो यह सब प्रकार से वृद्धि को प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो बुद्धिमान् जन सूर्य्य के सदृश विद्या को प्रकाशित करके अविद्या का नाश करते हैं, वे अतुल सुख को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे ऋतजात प्रचेतरग्ने ! विप्रस्त्वं यथा सत्पतिः सूर्य्यः शवसा वृत्रं हन्ति पणेर्वाजं वि भर्ति तथा यं त्वं सजोषा रायाऽपां नप्त्रा सह हिनोषि सोऽयं सर्वतो वर्धते ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (सत्पतिः) सत उदकस्य पालकः। सदित्युदकनाम। (निघं०१.१२) (शवसा) बलेन (हन्ति) (वृत्रम्) मेघम् (अग्ने) प्रकाशस्वरूप (विप्रः) मेधावी (वि) (पणेः) व्यवहर्त्तुः (भर्त्ति) दधाति (वाजम्) अन्नं विज्ञानं वा (यम्) (त्वम्) (प्रचेतः) प्रकृष्टविज्ञान (ऋतजात) य ऋते सत्ये जायते तत्सम्बुद्धौ (राया) धनेन (सजोषाः) समानप्रीतिसेवी (नप्त्रा) यो न पतति तेन (अपाम्) जलानाम् (हिनोषि) वर्धयसि ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मेधाविनः सूर्य्यवद्विद्यां प्रकाश्याविद्यां घ्नन्ति तेऽतुलं सुखं लभन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे बुद्धिमान लोक सूर्याप्रमाणे विद्या प्रकाशित करतात व अविद्येचा नाश करतात ते अतुल सुख प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥