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स त्वं नो॑ अर्व॒न्निदा॑या॒ विश्वे॑भिरग्ने अ॒ग्निभि॑रिधा॒नः। वेषि॑ रा॒यो वि या॑सि दु॒च्छुना॒ मदे॑म श॒तहि॑माः सु॒वीराः॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa tvaṁ no arvan nidāyā viśvebhir agne agnibhir idhānaḥ | veṣi rāyo vi yāsi ducchunā madema śatahimāḥ suvīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। त्वम्। नः॒। अ॒र्व॒न्। निदा॑याः। विश्वे॑भिः। अ॒ग्ने॒। अ॒ग्निऽभिः॑। इ॒धा॒नः। वेषि॑। रा॒यः। वि। या॒सि॒। दु॒च्छुनाः॑। मदे॑म। श॒तऽहि॑माः। सु॒ऽवीराः॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:12» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:14» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अर्वन्) घोड़े की सदृश शीघ्र चलाते हुए (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रतापी जिस कारण से (त्वम्) आप (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (अग्निभिः) बिजुली आदिकों से (इधानः) निरन्तर प्रकाशमान (नः) हम लोगों की (निदायाः) निन्दा करते हुए प्रजाजन के (रायः) धनों को (वेषि) व्याप्त होते हो और (दुच्छुनाः) दुष्ट श्वा के सदृश वर्त्तमान सेनाओं को (वि, यासि) विशेष प्राप्त होते हो (सः) वह आप और हम लोग (शतहिमाः) सौ हिम वर्ष जिनके वे (सुवीराः) सुन्दर वीर जन (मदेम) हर्षित होवें ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सम्पूर्ण अग्नि आदि पदार्थों से कार्य्यों को सिद्ध करके जो न्याय की आज्ञा से विरुद्ध प्रजाजन हैं, उनको ताड़न करके शान्त सम्पादित करें, क्योंकि इस प्रकार न्याय के आचरण से सम्पूर्ण जन सौ वर्ष युक्त होते हैं ॥६॥ इस सूक्त में विद्वान्, राजा और प्रजा के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बारहवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे अर्वन्नग्ने ! यतस्त्वं विश्वेभिरग्निभिरिधानो नो निदाया रायो वेषि दुच्छुना वि यासि स त्वं वयं च शतहिमाः सुवीरा मदेम ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (त्वम्) (नः) अस्मान् (अर्वन्) अश्वेव [अश्व इव] शीघ्रं गमयन् (निदायाः) निन्दिकायाः प्रजायाः (विश्वेभिः) समग्रैः (अग्ने) पावक इव प्रतापिन् (अग्निभिः) विद्युदादिभिः (इधानः) देदीप्यमानः (वेषि) व्याप्नोषि (रायः) धनानि (वि) (यासि) प्राप्नोषि (दुच्छुनाः) दुष्टः श्वेव वर्त्तमानाः सेनाः (मदेम) हर्षेम (शतहिमाः) शतं हिमानि येषान्ते (सुवीराः) शोभनाश्च ते वीराः ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः समग्रैरग्न्यादिभिः पदार्थैः कार्य्याणि संसाध्य या न्यायाज्ञाविरुद्धाः प्रजास्ता दण्डयित्वा शान्ताः सम्पादनीया एवं हि न्यायाचरणेन सर्वे शतायुषो भवन्ति ॥६॥ अत्र विद्वद्राजप्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वादशं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी संपूर्ण अग्नी इत्यादी पदार्थांनी कार्य करून जे प्रजाजन न्यायाविरुद्ध वागतात त्यांना दंड देऊन शांतता स्थापित करावी. या प्रकारे न्यायाचरणाने वागल्यास सर्व लोक शंभर वर्षे जगतील. ॥ ६ ॥