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तेजि॑ष्ठा॒ यस्या॑र॒तिर्व॑ने॒राट् तो॒दो अध्व॒न्न वृ॑धसा॒नो अ॑द्यौत्। अ॒द्रो॒घो न द्र॑वि॒ता चे॑तति॒ त्मन्नम॑र्त्योऽव॒र्त्र ओष॑धीषु ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tejiṣṭhā yasyāratir vanerāṭ todo adhvan na vṛdhasāno adyaut | adrogho na dravitā cetati tmann amartyo vartra oṣadhīṣu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तेजि॑ष्ठा। यस्य॑। अ॒र॒तिः। व॒ने॒ऽराट्। तो॒दः। अध्व॑न्। न। वृ॒ध॒सा॒नः। अ॒द्यौ॒त्। अ॒द्रो॒घः। न। द्र॒वि॒ता। चे॒त॒ति॒। त्मन्। अम॑र्त्यः। अ॒व॒र्त्रः। ओष॑धीषु ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:12» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिस अग्नि के सदृश राजा की (तेजिष्ठा) अतिशय तेजस्विनी (अरतिः) प्राप्ति (वनेराट्) सेवन करने योग्य वा किरण में शोभित होनेवाली (अध्वन्) मार्ग में (वृधसानः) बढ़ती हुई (तोदः) पीड़ा (न) जैसे वैसे (अद्यौत्) प्रकाशित होती है वह (अद्रोघः) द्रोह से रहित (न) जैसे वैसे (द्रविता) चलनेवाला (त्मन्) आत्मा में (अमर्त्यः) मरणधर्म्म से रहित (अवर्त्रः) नहीं निवारण करने योग्य (ओषधीषु) सोमलता आदि ओषधियों में (चेतति) जनाता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिस राजा की तेजस्विनी प्रकृति और प्रेरणा होवे, वह द्रोहरहित हुआ जैसे ओषधियाँ दुःखको, वैसे सब के दुःख का निवारण करता है, वही कृतकृत्य होता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यस्याग्नेस्तेजिष्ठाऽरतिर्वनेराडध्वन् वृधसानस्तोदो नाद्यौत् सोऽद्रोघो न द्रविता त्मन्नमर्त्योऽवर्त्र ओषधीषु चेतति ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तेजिष्ठा) अतिशयेन तेजस्विनी (यस्य) अग्नेरिव राज्ञः (अरतिः) प्राप्तिः (वनेराट्) या वने सेवनीये किरणे वा राजते (तोदः) व्यथनम् (अध्वन्) अध्वनि (न) इव (वृधसानः) वर्धमानः (अद्यौत्) द्योतते (अद्रोघः) द्रोहरहितः (न) इव (द्रविता) गन्ता (चेतति) सञ्ज्ञापयति (त्मन्) आत्मनि (अमर्त्यः) मरणधर्म्मरहितः (अवर्त्रः) अनिवारणीयः (ओषधीषु) सोमलतादिषु ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यस्य तेजस्विनी प्रकृतिः प्रेरणा च भवेत् स द्रोहरहितः सन्नौषधानि दुःखमिव सर्वस्य दुःखं निवारयति स एव कृतकृत्यो भवति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो राजा तेजस्वी, प्रेरक, ईर्षाद्वेषरहित असतो व औषधी जसे दुःख निवारण करते तसे सर्वांचे दुःख निवारण करतो तोच कृतकृत्य होतो. ॥ ३ ॥