तेजि॑ष्ठा॒ यस्या॑र॒तिर्व॑ने॒राट् तो॒दो अध्व॒न्न वृ॑धसा॒नो अ॑द्यौत्। अ॒द्रो॒घो न द्र॑वि॒ता चे॑तति॒ त्मन्नम॑र्त्योऽव॒र्त्र ओष॑धीषु ॥३॥
tejiṣṭhā yasyāratir vanerāṭ todo adhvan na vṛdhasāno adyaut | adrogho na dravitā cetati tmann amartyo vartra oṣadhīṣu ||
तेजि॑ष्ठा। यस्य॑। अ॒र॒तिः। व॒ने॒ऽराट्। तो॒दः। अध्व॑न्। न। वृ॒ध॒सा॒नः। अ॒द्यौ॒त्। अ॒द्रो॒घः। न। द्र॒वि॒ता। चे॒त॒ति॒। त्मन्। अम॑र्त्यः। अ॒व॒र्त्रः। ओष॑धीषु ॥३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुना राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥
हे मनुष्या ! यस्याग्नेस्तेजिष्ठाऽरतिर्वनेराडध्वन् वृधसानस्तोदो नाद्यौत् सोऽद्रोघो न द्रविता त्मन्नमर्त्योऽवर्त्र ओषधीषु चेतति ॥३॥