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इ॒मं य॒ज्ञं चनो॑ धा अग्न उ॒शन्यं त॑ आसा॒नो जु॑हु॒ते ह॒विष्मा॑न्। भ॒रद्वा॑जेषु दधिषे सुवृ॒क्तिमवी॒र्वाज॑स्य॒ गध्य॑स्य सा॒तौ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imaṁ yajñaṁ cano dhā agna uśan yaṁ ta āsāno juhute haviṣmān | bharadvājeṣu dadhiṣe suvṛktim avīr vājasya gadhyasya sātau ||

पद पाठ

इ॒मम्। य॒ज्ञम्। चनः॑। धाः॒। अ॒ग्ने॒। उ॒शन्। यम्। ते॒। आ॒सा॒नः। जु॒हु॒ते। ह॒विष्मा॑न्। भ॒रत्ऽवा॑जेषु। द॒धि॒षे॒। सु॒ऽवृ॒क्तिम्। अवीः॑। वाज॑स्य। गध्य॑स्य। सा॒तौ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:10» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) पुरुषार्थी विद्वन् ! आप (यम्) जिस (यज्ञम्) परोपकारनामक यज्ञ की (उशन्) कामना करते हुए (चनः) अन्न आदि को (धाः) धारण करें और (आसानः) बैठे हुए (हविष्मान्) बहुत देने और भोग करने योग्य पदार्थ जिनमें वह आप (जुहुते) हवन करते हैं (इमम्) इसकी (गध्यस्य) अभिकाङ्क्षा करने योग्य (वाजस्य) विज्ञान आदि के (सातौ) संग्राम में (अवीः) रक्षा कीजिये और (भरद्वाजेषु) अन्न आदि को धारण करनेवालों में (सुवृक्तिम्) उत्तम प्रकार चलते हैं जिसमें उस मार्ग को (दधिषे) धारण कीजिये उन (ते) आपका सम्पूर्ण सुख सुगम होजाये ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो परोपकार करते हैं, उनको ही अभीष्ट स्वार्थसिद्धि होती है ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं यं यज्ञमुशञ्चनो धा आसानो हविष्मान्त्सम्भवाञ्जुहुत इमं गध्यस्य वाजस्य साताववीर्भरद्वाजेषु सुवृक्तिं दधिषे तस्य ते सर्वं सुखं सुगमं जायेत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इमम्) (यज्ञम्) परोपकाराख्यम् (चनः) अन्नादिकम् (धाः) धेहि (अग्ने) पुरुषार्थिन् विद्वन् (उशन्) कामयमानः (यम्) (ते) तव (आसानः) आसीनः (जुहुते) जुहोति (हविष्मान्) बहूनि हवींषि दातव्यानि भोक्तव्यानि विद्यन्ते येषु (भरद्वाजेषु) ये वाजानन्नादीन् भरन्ति तेषु (दधिषे) (सुवृक्तिम्) सुष्ठु व्रजन्ति यस्मिन्मार्गे तम् (अवीः) रक्षेः (वाजस्य) विज्ञानादेः (गध्यस्य) अभिकाङ्क्षितुं योग्यस्य (सातौ) सङ्ग्रामे ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये परोपकारं कुर्वन्ति तेषामेवाभीष्टा स्वार्थसिद्धिर्जायते ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे परोपकार करतात त्यांचे कल्याण होते. ॥ ६ ॥