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सो अ॑ग्न ईजे शश॒मे च॒ मर्तो॒ यस्त॒ आन॑ट् स॒मिधा॑ ह॒व्यदा॑तिम्। य आहु॑तिं॒ परि॒ वेदा॒ नमो॑भि॒र्विश्वेत्स वा॒मा द॑धते॒ त्वोतः॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

so agna īje śaśame ca marto yas ta ānaṭ samidhā havyadātim | ya āhutim pari vedā namobhir viśvet sa vāmā dadhate tvotaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। अ॒ग्ने॒। ई॒जे॒। श॒श॒मे। च॒। मर्तः॑। यः। ते॒। आन॑ट्। स॒म्ऽइधा॑। ह॒व्यऽदा॑तिम्। यः। आऽहु॑तिम्। परि॑। वे॒द॒। नमः॑ऽभिः। विश्वा॑। इत्। सः। वा॒मा। द॒ध॒ते॒। त्वाऽऊ॑तः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:1» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:36» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह अग्नि कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान विद्वन् ! (ते) आप का (यः) जो (मर्त्तः) मनुष्य (समिधा) समिध् से (हव्यदातिम्) हवन करने योग्य वस्तुओं के देनेवाले को (आनट्) व्याप्त होता है, उसको जाननेवाला (सः) वह मैं उसको (ईजे) उत्तम प्रकार प्राप्त होता और (शशमे) प्रशंसा करता हूँ (च) और (यः) जो (आहुतिम्) आहुति को अर्थात् जो चारों ओर होमी जाती उस सामग्री को (परि) सब प्रकार से (वेदा) जानता है (सः) वह (त्वोतः) आप से रक्षित हुआ (नमोभिः) अन्न आदिकों वा सत्कारों से (विश्वा) सम्पूर्ण (वामा) प्रशंसा करने योग्य कर्म्मों को (इत्) ही (दधते) धारण करता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो प्रशंसित कार्य्यों का करनेवाला अग्नि है, उसको विशेष कर जानिये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सोऽग्निः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने विद्वन् ! ते यो मर्त्तः समिधा हव्यदातिमानट् तद्वेत्ता सोऽहं तमीजे शशमे च। य आहुतिं परि वेदा स त्वोतो नमोभिर्विश्वा वामेद्दधते ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान विद्वन् (ईजे) सङ्गच्छ (शशमे) प्रशंसामि। शशमान इति अर्चतिकर्म्मा (निघं०३.१४) (च) (मर्त्तः) मनुष्य (यः) (ते) तव (आनट्) व्याप्नोति (समिधा) (हव्यदातिम्) यो हव्यानि ददाति तम् (यः) (आहुतिम्) या समन्ताद्धूयते ताम् (परि) सर्वतः (वेदा) जानाति। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नमोभिः) अन्नादिभिः (सत्कारैर्वा) (विश्वा) सर्वाणि (इत्) एव (सः) (वामा) प्रशस्यानि कर्म्माणि (दधते) (त्वोतः) त्वया रक्षितः ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः प्रशंसितकार्य्यकरोऽग्निरस्ति तं विजानीत ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! प्रशंसित कार्य करणाऱ्या अग्नीला विशेषत्वाने जाणा. ॥ ९ ॥