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ता वा॒मेषे॒ रथा॑नामिन्द्रा॒ग्नी ह॑वामहे। पती॑ तु॒रस्य॒ राध॑सो वि॒द्वांसा॒ गिर्व॑णस्तमा ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā vām eṣe rathānām indrāgnī havāmahe | patī turasya rādhaso vidvāṁsā girvaṇastamā ||

पद पाठ

ता। वा॒म्। एषे॑। रथा॑नाम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। ह॒वा॒म॒हे॒। पती॒ इति॑। तु॒रस्य॑। राध॑सः। वि॒द्वांसा॑। गिर्व॑णःऽतमा ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:86» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:32» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (रथानाम्) वाहनों और (तुरस्य) शीघ्र सुखकारक (राधसः) धन के (पती) पालन करनेवाले (गिर्वणस्तमा) अतिशय उत्तम प्रकार शिक्षित वाणी का सेवन करते हुए (विद्वांसा) विद्या से युक्त (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली (वाम्) और आप दोनों को (एषे) प्राप्त होने के लिये हम लोग (हवामहे) प्राप्त होने की इच्छा करें (ता) उन दोनों को आप लोग भी प्राप्त होओ ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि वायु और बिजुली के सदृश श्रेष्ठ गुणों से व्याप्त विद्वानों के सङ्ग से विद्या और शिक्षा को प्राप्त होकर प्रजाओं में मित्र के सदृश वर्त्ताव करें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यौ रथानां तुरस्य राधसः पती गिर्वणस्तमा विद्वांसेन्द्राग्नी वामेषे वयं हवामहे ता यूयमपि प्राप्नुत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (वाम्) युवाम् (एषे) एतुम् (रथानाम्) (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (हवामहे) प्राप्तुमिच्छेम (पती) पालकौ (तुरस्य) शीघ्रं सुखकरस्य (राधसः) धनस्य (विद्वांसा) विद्यायुक्तौ (गिर्वणस्तमा) अतिशयेन सुशिक्षितां वाचं सेवमानौ ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्वायुविद्युद्वच्छुभगुणव्यापिनां विदुषां सङ्गेन विद्याशिक्षे प्राप्य प्रजासु मित्रवद्वर्त्तितव्यम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी वायू व विद्युतप्रमाणे श्रेष्ठ गुणांनी व्याप्त असलेल्या विद्वानांच्या संगतीने विद्या व शिक्षण प्राप्त करून प्रजेमध्ये मित्राप्रमाणे वर्तन करावे. ॥ ४ ॥