वांछित मन्त्र चुनें

स्तोमा॑सस्त्वा विचारिणि॒ प्रति॑ ष्टोभन्त्य॒क्तुभिः॑। प्र या वाजं॒ न हेष॑न्तं पे॒रुमस्य॑स्यर्जुनि ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stomāsas tvā vicāriṇi prati ṣṭobhanty aktubhiḥ | pra yā vājaṁ na heṣantam perum asyasy arjuni ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्तोमा॑सः। त्वा॒। वि॒ऽचा॒रि॒णि॒। प्रति॑। स्तो॒भ॒न्ति॒। अ॒क्तु॒ऽभिः॑। प्र। या। वाज॑म्। न। हेष॑न्तम्। पे॒रुम्। अस्य॑सि। अ॒र्जु॒नि॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:84» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:29» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री कैसी हो, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अर्जुनि) उषा के समान वर्त्तमान (विचारिणि) विचार करनेवाली स्त्री ! (या) जो तू (वाजम्) वेग के (न) समान (हेषन्तम्) शब्द करते हुए (पेरुम्) पूर्ण करनेवाले को (प्र, अस्यसि) फेंकती है उस (त्वा) तेरी (स्तोमासः) स्तुति करनेवाले जन (अक्तुभिः) रात्रियों से (प्रति, स्तोभन्ति) सब प्रकार स्तुति करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे विद्वान् जन स्तुति करने योग्य जनों की स्तुति करते हैं, वैसे ही विद्यायुक्त स्त्री प्रशंसा करने योग्य की प्रशंसा करती है ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स्त्री कीदृशी भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे अर्जुनि विचारिणि ! या त्वं वाजं न हेषन्तं पेरुं प्राऽस्यसि तां त्वा स्तोमासोऽक्तुभिः प्रति ष्टोभन्ति ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तोमासः) स्तुतिकर्त्तारः (त्वा) त्वाम् (विचारिणि) विचारितुं शीलं यस्यास्तत्सम्बुद्धौ (प्रति) (स्तोभन्ति) स्तुवन्ति (अक्तुभिः) रात्रिभिः (प्र) (या) (वाजम्) वेगम् (न) इव (हेषन्तम्) शब्दं कुर्वन्तम् (पेरुम्) पूरकम् (अस्यसि) प्रक्षिपसि (अर्जुनि) उषर्वद्वर्त्तमाने ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ । यथा विद्वांसः स्तुत्यान् स्तुवन्ति तथैव विदुषी स्त्री प्रशंसनीयं प्रशंसति ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे विद्वान लोक स्तुती करण्यायोग्य लोकांची स्तुती करतात. तसेच विदुषी स्त्री प्रशंसा करण्यायोग्याची प्रशंसा करते. ॥ २ ॥