वांछित मन्त्र चुनें

यत्प॑र्जन्य॒ कनि॑क्रदत्स्त॒नय॒न् हंसि॑ दु॒ष्कृतः॑। प्रती॒दं विश्वं॑ मोदते॒ यत्किं च॑ पृथि॒व्यामधि॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yat parjanya kanikradat stanayan haṁsi duṣkṛtaḥ | pratīdaṁ viśvam modate yat kiṁ ca pṛthivyām adhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। प॒र्ज॒न्य॒। कनि॑क्रदत्। स्त॒नय॑न्। हंसि॑। दुः॒ऽकृतः॑। प्रति॑। इ॒दम्। विश्व॑म्। मो॒द॒ते॒। यत्। किम्। च॒। पृ॒थि॒व्याम्। अधि॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:83» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (पर्जन्य) मेघ (कनिक्रदत्) अत्यन्त शब्द करता तथा (स्तनयन्) गर्जन करता हुआ (दुष्कृतः) दुःख से करनेवालों का (हंसि) नाश करता है (यत्) जो (किम्) कुछ (च) भी (इदम्) यह वर्त्तमान (पृथिव्याम्) पृथिवी (अधि) पर (विश्वम्) सम्पूर्ण जगत् वर्त्तमान है वह जिस मेघ से (प्रति, मोदते) आनन्दित होता है, वह बड़ा उपकारी है ॥९॥
भावार्थभाषाः - मेघ से ही सम्पूर्ण प्राणी आनन्दित होते हैं, इससे यह मेघ को बनानारूप कर्म्म परमेश्वर का धन्यवाद के योग्य है, यह सब लोग जानो ॥९॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यद्यः पर्जन्य कनिक्रदत् स्तनयन् दुष्कृतो हंसि यत्किं चेदं पृथिव्यामधि विश्वं वर्त्तते तत्सर्वं येन मेघेन प्रति मोदते स महानुपकार्यस्ति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यः (पर्जन्य) पर्जन्यो मेघः (कनिक्रदत्) भृशं शब्दयन् (स्तनयन्) गर्जनं कुर्वन् (हंसि) अत्र पुरुषव्यत्ययः। (दुष्कृतः) ये दुःखेन कुर्वन्ति तान् (प्रति) (इदम्) वर्त्तमानम् (विश्वम्) सर्वं जगत् (मोदते) (यत्) (किम्) (च) (पृथिव्याम्) (अधि) उपरि ॥९॥
भावार्थभाषाः - मेघेनैव सर्वाणि भूतान्यानन्दन्ति तस्मादिदं मेघनिर्माणाख्यं कर्म परमेश्वरस्य धन्यवादार्हमस्तीति सर्वे विजानन्तु ॥९॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - मेघानेच संपूर्ण प्राणी आनंदित होतात. त्यामुळे मेघनिर्मितीचे कार्य परमेश्वराला धन्यवाद देण्यायोग्य आहे. हे सर्वांनी जाणावे. ॥ ९ ॥