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देवता: पृथिवी ऋषि: अत्रिः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

म॒हान्तं॒ कोश॒मुद॑चा॒ नि षि॑ञ्च॒ स्यन्द॑न्तां कु॒ल्या विषि॑ताः पु॒रस्ता॑त्। घृ॒तेन॒ द्यावा॑पृथि॒वी व्यु॑न्धि सुप्रपा॒णं भ॑वत्व॒घ्न्याभ्यः॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahāntaṁ kośam ud acā ni ṣiñca syandantāṁ kulyā viṣitāḥ purastāt | ghṛtena dyāvāpṛthivī vy undhi suprapāṇam bhavatv aghnyābhyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हान्त॑म्। कोश॑म्। उत्। अ॒च॒। नि। सि॒ञ्च॒। स्यन्द॑न्ताम्। कु॒ल्याः। विऽसि॑ताः। पु॒रस्ता॑त्। घृ॒तेन॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। वि। उ॒न्धि॒। सु॒ऽप्र॒पा॒नम्। भ॒व॒तु॒। अ॒घ्न्याभ्यः॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:83» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मेघनिमित्त कौन हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सूर्य्य (महान्तम्) बड़े परिमाणवाले (कोशम्) घनादिकों के कोश के समान जल से परिपूर्ण मेघ को (उत्) (अचा) ऊपर प्राप्त होता है और जिससे पृथिवी को (नि, सिञ्च) निरन्तर सींचता है और (पुरस्तात्) प्रथम (विषिताः) व्याप्त (कुल्याः) रचे गये जल के निकलने के मार्ग (स्यन्दन्ताम्) बहें और जो (घृतेन) जल से (द्यावापृथिवी) पृथिवी और अन्तरिक्ष को (वि, उन्धि) अच्छे प्रकार गीला करता है वह (अघ्न्याभ्यः) गौओं के लिये (सुप्रपाणम्) उत्तम प्रकार प्रकर्षता से पीते हैं जिसमें ऐसा जलाशय (भवतु) हो, यह जानो ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो बिजुली, सूर्य्य और वायु मेघ के कारण हैं, उनको यथायोग्य प्रयुक्त कीजिये जिससे वृष्टि द्वारा गौ आदि पशुओं का यथावत् पालन होवे ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मेघनिमित्तानि कानि सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यः सूर्य्यो महान्तं कोशमुदचा येन पृथिवीं नि षिञ्च पुरस्ताद्विषिताः कुल्याः स्यन्दन्तां यो घृतेन द्यावापृथिवी व्युन्धि सोऽघ्न्याभ्यः सुप्रपाणं भवत्विति वित्त ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महान्तम्) महत्परिमाणम् (कोशम्) धनादीनां कोश इव जलेन पूर्णं मेघम्। कोश इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (उत्) (अचा) ऊर्ध्वं गच्छति (नि) नितराम् (सिञ्च) सिञ्चति। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः। (स्यन्दन्ताम्) प्रस्रवन्तु (कुल्याः) निर्म्मिता जलगमनमार्गाः (विषिताः) व्याप्ताः (पुरस्तात्) (घृतेन) जलेन। घृतमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (द्यावापृथिवी) भूम्यन्तरिक्षे (वि) (उन्धि) विशेषेणोन्दयति क्लेदयति (सुप्रपाणम्) सुष्ठु प्रकर्षेण पिबन्ति यस्मिन् स जलाशयः (भवतु) (अघ्न्याभ्यः) गोभ्यः ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! या विद्युत् सूर्य्यो वायुश्च मेघनिमित्तानि सन्ति तानि यथवत्प्रयोजयत यतो वर्षणेन गवादीनां यथावत् पालनं स्यात् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जे विद्युत, सूर्य, वायू, मेघाचे कारण असतात त्यांचा यथायोग्य उपयोग करून घ्या. ज्यामुळे वृष्टीद्वारे गाई इत्यादी पशूंचे पालन यथायोग्य व्हावे. ॥ ८ ॥