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अना॑गसो॒ अदि॑तये दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। विश्वा॑ वा॒मानि॑ धीमहि ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anāgaso aditaye devasya savituḥ save | viśvā vāmāni dhīmahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अना॑गसः। अदि॑तये। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः॒। स॒वे। विश्वा॑। वा॒मानि॑। धी॒म॒हि॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:82» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इस जगत् में मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (अनागसः) अपराध से रहित हम लोग (अदितये) माता आदि के लिये (देवस्य) सर्व सुख देनेवाले (सवितुः) सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त परमात्मा के (सवे) जगद्रूप ऐश्वर्य्य में (विश्वा) सम्पूर्ण (वामानि) संभोग करने योग्य धनों को (धीमहि) धारण करें, वैसे आप लोग भी धारण करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे विद्वान् जन इस ईश्वर से रचे हुए संसार में सृष्टिक्रम से विद्या के द्वारा कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वैसे ही अन्य जनों को भी चाहिये कि सिद्ध करें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अस्मिन् जगति मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथाऽनागसो वयमदितये देवस्य सवितुः सवे विश्वा वामानि धीमहि तथा यूयमपि धरत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनागसः) अनपराधाः (अदितये) मात्राद्याय (देवस्य) सर्वसुखदातुः (सवितुः) सकलैश्वर्य्यसम्पन्नस्य (सवे) जगद्रूपैश्वर्य्ये (विश्वा) सर्वाणि (वामानि) वननीयानि सम्भजनीयानि धनानि (धीमहि) धरेम ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा विद्वांसोऽस्मिन्नीश्वररचिते जगति सृष्टिक्रमेण विद्यया कार्य्याणि साध्नुवन्ति तथैवान्यैरपि साधनीयानि ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक ईश्वराने निर्माण केलेल्या या जगात सृष्टिक्रमाने (विद्येद्वारे) कार्य करतात. तसेच इतर लोकांनीही करावे. ॥ ६ ॥