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ए॒षा गोभि॑ररु॒णेभि॑र्युजा॒नास्रे॑धन्ती र॒यिमप्रा॑यु चक्रे। प॒थो रद॑न्ती सुवि॒ताय॑ दे॒वी पु॑रुष्टु॒ता वि॒श्ववा॑रा॒ वि भा॑ति ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣā gobhir aruṇebhir yujānāsredhantī rayim aprāyu cakre | patho radantī suvitāya devī puruṣṭutā viśvavārā vi bhāti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षा। गोभिः॑। अ॒रु॒णेभिः॑। यु॒जा॒ना। अस्रे॑धन्ती। र॒यिम्। अप्र॑ऽआयु। च॒क्रे॒। प॒थः॒। रद॑न्ती। सु॒वि॒ताय॑। दे॒वी। पु॒रु॒ऽस्तु॒ता। वि॒श्वऽवा॑रा। वि। भा॒ति॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:80» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यायुक्त स्त्रि ! जैसे (एषा) यह प्रातर्वेला (अरुणेभिः) चारों ओर रक्त वर्णवाले (गोभिः) किरणों के साथ (युजाना) युक्त और (रयिम्) धन को (अस्रेधन्ती) सिद्ध करती हुई (अप्रायु) नहीं नष्ट होनेवाले को (चक्रे) करती है और (पथः) मार्गों को (रदन्ती) खोदती हुई (पुरुष्टुता) बहुतों से प्रशंसा की गई (विश्ववारा) सम्पूर्ण मनुष्यों से स्वीकार करने योग्य (देवी) प्रकाशित होती हुई (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिये (वि, भाति) विशेष करके प्रकाशित होती है, वैसे आप होओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पतिव्रता, विद्यायुक्त और चतुर स्त्री गृह को प्रकाशित करनेवाली होती है, वैसे ही प्रातर्वेला ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करनेवाली है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विदुषि स्त्रि ! यथैषोषा अरुणेभिर्गोभिर्युजाना रयिमस्रेधन्ती अप्रायु चक्रे पथो रदन्ती पुरुष्टुता विश्ववारा देवी सुविताय वि भाति तथा त्वं भव ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एषा) उषाः (गोभिः) किरणैः (अरुणेभिः) आरक्तवर्णैः सह (युजाना) युक्ता (अस्रेधन्ती) साधयन्ती (रयिम्) धनम् (अप्रायु) यन्न प्रैति नश्यति तत् (चक्रे) करोति (पथः) मार्गान् (रदन्ती) लिखन्ती (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (देवी) द्योतमाना (पुरुष्टुता) बहुभिः प्रशंसिता (विश्ववारा) विश्वैः सर्वैर्मनुष्यैर्वरणीया (वि, भाति) विशेषेण प्रकाशते ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा पतिव्रता विदुषी विचक्षणा स्त्री गृहस्य प्रकाशिका वर्त्तते तथैवोषा ब्रह्माण्डस्य प्रकाशिका वर्त्तते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पतिव्रता विद्यायुक्त व चतुर स्त्री घर व्यवस्थित ठेवते. तशीच प्रातःकाळची वेळ ब्रह्मांडाला प्रकाशित करणारी असते. ॥ ३ ॥