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त्वाम॑ग्ने॒ मानु॑षीरीळते॒ विशो॑ होत्रा॒विदं॒ विवि॑चिं रत्न॒धात॑मम्। गुहा॒ सन्तं॑ सुभग वि॒श्वद॑र्शतं तुविष्व॒णसं॑ सु॒यजं॑ घृत॒श्रिय॑म् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām agne mānuṣīr īḻate viśo hotrāvidaṁ viviciṁ ratnadhātamam | guhā santaṁ subhaga viśvadarśataṁ tuviṣvaṇasaṁ suyajaṁ ghṛtaśriyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। मानु॑षीः। ई॒ळ॒ते॒। विशः॑। हो॒त्राऽविद॑म्। विवि॑चिम्। र॒त्न॒ऽधात॑मम्। गुहा॑। सन्त॑म्। सु॒ऽभ॒ग॒। वि॒श्वऽद॑र्शतम्। तु॒वि॒ऽस्व॒नस॑म्। सु॒ऽयज॑म्। घृ॒त॒ऽश्रिय॑म् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:8» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुभग) सुन्दर ऐश्वर्य्य से युक्त (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान ! (मानुषीः) मनुष्यसम्बन्धिनी (विशः) प्रजायें जिस (होत्राविदम्) हवनों के गुणों को जाननेवाले (विविचिम्) विवेचक विभाग करने (रत्नधातमम्) रत्नों के अतीव धारण करने (विश्वदर्शतम्) संसार के प्रकाश करने और (तुविष्वणसम्) बहुतों की सेवा करनेवाले (सुयजम्) उत्तम प्रकार यज्ञ करते जिससे उस (घृतश्रियम्) घृत का आश्रय करते वा घृत से शोभते हुए (गुहा) अन्तःकरण में (सन्तम्) अभिव्याप्त होकर स्थित (त्वाम्) आपको (ईळते) गुणों से प्रकाशित करती हैं, उनको हम लोग भी जानें ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग जिस बिजुली रूप अग्नि से जीवन और चेतनता होती है, तद्वत् राजा को जान के सुख बढ़ाओ ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सुभगाग्ने ! मानुषीर्विशो यं होत्राविदं विविचिं रत्नधातमं विश्वदर्शतं तुविष्वणसं सुयजं घृतश्रियं गुहा सन्तं त्वामीळते ता वयमपि विजानीयाम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान (मानुषीः) मनुष्यसम्बन्धिन्यः (ईळते) स्तुवन्ति गुणैः प्रकाशितं कुर्वन्ति (विशः) प्रजाः (होत्राविदम्) होत्राणि हवनानि वेत्ति तम् (विविचिम्) विवेचकं विभागकर्त्तारम् (रत्नधातमम्) रत्नानामतिशयेन धर्त्तारम् (गुहा) गुहायामन्तःकरणे (सन्तम्) अभिव्याप्य स्थितम् (सुभग) शोभनैश्वर्य्य (विश्वदर्शतम्) विश्वस्य प्रकाशकम् (तुविष्वणसम्) बहूनां सेवकम् (सुयजम्) सुष्ठु यजन्ति यस्मात्तम् (घृतश्रियम्) यो घृतं श्रयति घृतेन शुम्भमानस्तम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! भवन्तो येन विद्युद्रूपेणाग्निना जीवनं चेतनता च जायते तद्वद्राजानं विज्ञाय सुखं वर्धयन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या विद्युतरूपी अग्नीने जीवन व चेतनता निर्माण होते तसा राजा असतो हे जाणून सुख वाढवा. ॥ ३ ॥