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ऐषु॑ धा वी॒रव॒द्यश॒ उषो॑ मघोनि सू॒रिषु॑। ये नो॒ राधां॒स्यह्र॑या म॒घवा॑नो॒ अरा॑सत॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aiṣu dhā vīravad yaśa uṣo maghoni sūriṣu | ye no rādhāṁsy ahrayā maghavāno arāsata sujāte aśvasūnṛte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। ए॒षु॒। धाः॒। वी॒रऽव॑त्। यशः॑। उषः॑। म॒घो॒नि॒। सू॒रिषु॑। ये। नः॒। राधां॑सि। अह्र॑या। म॒घऽवा॑नः। अरा॑सत। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:79» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञानवाली (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई (मघोनि) प्रशंसित धन से युक्त और (उषः) प्रातःकाल के सदृश वर्त्तमान उत्तम स्त्री ! तू (एषु) इन स्त्री-पुरुषों और (सूरिषु) विद्वानों में (वीरवत्) वीरजन विद्यमान जिसमें उस (यशः) यश को (आ) सब प्रकार से (धाः) धारण कर और (ये) जो (मघवानः) बहुत धनों से युक्त जन (नः) हम लोगों को (अह्रया) विना लज्जा से कहे गये (राधांसि) अन्नों को (अरासत) देवें, उनका तू सत्कार कर ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वही प्रशंसित स्त्री है जो पिता और पति के कुल में श्रेष्ठ आचरण से पिता और पति के कुल को प्रकाशित करे ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अश्वसूनृते सुजाते मघोन्युषर्वद्वर्त्तमान उत्तमे स्त्रि ! त्वमेषु सूरिषु वीरवद्यश आ धाः। ये मघवानो नोऽह्रया राधांस्यरासत तांस्त्वं सत्कुर्य्याः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (एषु) स्त्रीपुरुषेषु (धाः) धेहि (वीरवत्) वीरा विद्यन्ते यस्मिँस्तत् (यशः) कीर्त्तिम् (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (मघोनि) प्रशंसितधनयुक्ते (सूरिषु) विद्वत्सु (ये) (नः) अस्मान् (राधांसि) अन्नानि (अह्रया) अलज्जया प्रतिपादितानि (मघवानः) बहुधनयुक्ताः (अरासत) दद्युः (सुजाते) (अश्वसूनृते) ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । सैव प्रशंसिता स्त्री या पितृपतिकुले शुभाचरणेन पितृपतिकुलं प्रकाशयेत् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी पिता व पतीच्या कुलात श्रेष्ठ आचरण करून पिता व पतीच्या कुलाला श्रेष्ठ बनविते त्याच स्त्रीची प्रशंसा होते. ॥ ६ ॥