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सा नो॑ अ॒द्याभ॒रद्व॑सु॒र्व्यु॑च्छा दुहितर्दिवः। यो व्यौच्छः॒ सही॑यसि स॒त्यश्र॑वसि वा॒य्ये सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sā no adyābharadvasur vy ucchā duhitar divaḥ | yo vy aucchaḥ sahīyasi satyaśravasi vāyye sujāte aśvasūnṛte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सा। नः॒। अ॒द्य। आ॒भ॒रत्ऽव॑सुः। वि। उ॒च्छ॒। दु॒हि॒तः॒। दि॒वः॒। यो इति॑। वि। औच्छः॑। सही॑यसि। स॒त्यऽश्र॑वसि। वा॒य्ये। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:79» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सत्यश्रवसि) सत्य व्यवहार से प्राप्त अन्न आदि ऐश्वर्य्यवाली (सुजाते) अच्छी विद्या से प्रकट हुई (वाय्ये) प्राप्त होने योग्य (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त (सहीयसि) अतिशय सहनशील और (दिवः) कामना करते हुए की (दुहितः) कन्या के सदृश विदुषी स्त्री (यो) जो तू (आभरद्वसुः) सब प्रकार से धनों को धारण करनेवाली हुई (नः) हम लोगों को (वि) विशेष करके (औच्छः) निवास करानेवाली है (सा) वह आप (अद्य) आज उत्तम सुख में (वि) विशेष करके (उच्छ) निवास कराओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्रियाँ प्रातर्वेला के सदृश श्रेष्ठ गुणवाली हों तो सब को आनन्द में वसाने के योग्य होती हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सत्यश्रवसि सुजाते वाय्येऽश्वसूनृते सहीयसि दिवो दुहितरिव विदुषि स्त्रि ! यो या त्वमाभरद्वसुः सती नोऽस्मान् व्यौच्छः सा त्वमद्य सुसुखे व्युच्छ ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सा) (नः) अस्मान् (अद्य) (आभरद्वसुः) या समन्ताद्वसूनि बिभर्त्ति सा (वि) (उच्छ) विवासय (दुहितः) दुहितरिव (दिवः) कामयमानस्य (यो) या (वि) (औच्छः) निवासितवती वर्त्तते (सहीयसि) अतिशयेन सोढ्रि (सत्यश्रवसि) सत्येन व्यवहारेण प्राप्तान्नाद्यैश्वर्य्ये (वाय्ये) गमनीये (सुजाते) शोभनया विद्यया प्रकटीभूते (अश्वसूनृते) महाज्ञानयुक्ते ॥३॥
भावार्थभाषाः - यदि स्त्रियः प्रातर्वेलावच्छुभगुणाः स्युस्तर्हि सर्वानानन्दे निवासयितुमर्हन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर स्त्रिया प्रातःकाळाप्रमाणे श्रेष्ठ गुणांनी युक्त असल्या तर सर्वांना आनंदात ठेवतात. ॥ ३ ॥