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ए॒ताव॒द्वेदु॑ष॒स्त्वं भूयो॑ वा॒ दातु॑मर्हसि। या स्तो॒तृभ्यो॑ विभावर्यु॒च्छन्ती॒ न प्र॒मीय॑से॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etāvad ved uṣas tvam bhūyo vā dātum arhasi | yā stotṛbhyo vibhāvary ucchantī na pramīyase sujāte aśvasūnṛte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒ताव॑त्। वा॒। इत्। उ॒षः॒। त्वम्। भूयः॑। वा॒। दातु॑म्। अ॒र्ह॒सि॒। या। स्तो॒तृऽभ्यः॑। वि॒भा॒ऽव॒रि॒। उ॒च्छन्ती॑। न। प्र॒ऽमीय॑से। सु॒ऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:79» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:22» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई (विभावरि) प्रकाशमान और (उषः) प्रातर्वेला के सदृश वर्त्तमान स्त्री ! (त्वम्) तू (एतावत्) इतने को (वा) वा (भूयः) अधिक को (वा) भी (दातुम्) देने को (अर्हसि) योग्य है और (या) जो तू (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये (उच्छन्ती) निवास करती हुई वर्त्तमान है, वह तू अपने स्वरूप से (इत्) ही (न) नहीं (प्रमीयसे) मरती है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे स्त्रीजनो ! जैसे उषर्वेला थोड़ी भी बड़े आनन्दों को देती है, वैसे तुम होओ ॥१०॥ इस सूक्त में प्रातः और स्त्री के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनाशीवाँ सूक्त और बाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अश्वसूनृते सुजाते विभावर्युषर्वद्वर्त्तमाने स्त्रि ! त्वमेतावद्वा भूयो वा दातुमर्हसि या त्वं स्तोतृभ्य उच्छन्ती निवसन्ती वर्त्तसे सा त्वमात्मस्वरूपेणेन्न प्रमीयसे ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एतावत्) (वा) (इत्) एव (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (त्वम्) (भूयः) अधिकम् (वा) वा (दातुम्) (अर्हसि) (या) (स्तोतृभ्यः) स्तावकेभ्यः (विभावरि) प्रकाशमाने (उच्छन्ती) निवसन्ती (न) निषेधे (प्रमीयसे) म्रियसे (सुजाते) (अश्वसूनृते) ॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे स्त्रियो ! यथोषाः स्वल्पा महत आनन्दान् प्रयच्छति तथा त्वं भवेति ॥१०॥ अत्रोषःस्त्रीगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनाऽशीतितमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे स्त्रियांनो! जशी उषा थोड्या वेळात पुष्कळ आनंद देते तसे तुम्ही व्हा. ॥ १० ॥