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यथा॒ वातो॒ यथा॒ वनं॒ यथा॑ समु॒द्र एज॑ति। ए॒वा त्वं द॑शमास्य स॒हावे॑हि ज॒रायु॑णा ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yathā vāto yathā vanaṁ yathā samudra ejati | evā tvaṁ daśamāsya sahāvehi jarāyuṇā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यथा॑। वातः॑। यथा॑। वन॑म्। यथा॑। स॒मु॒द्रः। एज॑ति। ए॒व। त्वम्। द॒श॒ऽमा॒स्य॒। स॒ह। अव॑। इ॒हि॒। ज॒रायु॑णा ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:78» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दशमास्य) दश महीनों में उत्पन्न हुए ! (यथा) जिस प्रकार से (वातः) वायु और (यथा) जिस प्रकार से (वनम्) जङ्गल (यथा) जिस प्रकार से (समुद्रः) समुद्र (एजति) कम्पित होता वा चलता है वैसे (एवा) ही (त्वम्) आप (जरायुणा) देह के ढाँपनेवाले के (सह) सहित (अव, इहि) आइये ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । वही गर्भ और उसमें स्थित बालक उत्तम होता है, जो दशवें महीने में होता है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे दशमास्य ! यथा वातो यथा वनं यथा समुद्र एजति तथैवा त्वं जरायुणा सहाऽवेहि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) येन प्रकारेण (वातः) वायुः (यथा) (वनम्) जङ्गलम् (यथा) (समुद्रः) उदधिः (एजति) कम्पते चलति वा (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (त्वम्) (दशमास्य) दशसु मासेषु जातः (सह) (अव) (इहि) आगच्छ (जरायुणा) देहावरणेन ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । स एव गर्भस्तत्स्थो बालकश्चोत्तमो जायते यो दशमे मासे जायते ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो दहाव्या महिन्यात जन्मतो तोच गर्भ व त्यात स्थित बालक उत्तम असते. ॥ ८ ॥