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देवता: अश्विनौ ऋषि: अत्रिः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

अश्वि॑ना हरि॒णावि॑व गौ॒रावि॒वानु॒ यव॑सम्। हं॒सावि॑व पतत॒मा सु॒ताँ उप॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvinā hariṇāv iva gaurāv ivānu yavasam | haṁsāv iva patatam ā sutām̐ upa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वि॑ना। ह॒रि॒णौऽइ॑व। गौ॒रौऽइ॑व। अनु॑। यव॑सम्। हं॒सौऽइ॑व। प॒त॒त॒म्। आ। सु॒तान्। उप॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:78» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) यजमान और यज्ञ करानेवाले आप दोनों (हंसाविव) दो हंसों के सदृश (सुतान्) उत्पन्न हुए ऐश्वर्य्य आदिकों के (उप) समीप (आ, पततम्) आइये तथा (यवसम्) सोमलता के (अनु) पश्चात् (हरिणाविव) जैसे हरिण दौड़ते हैं, वैसे और (गौराविव) जैसे दो मृग दौड़ते हैं, वैसे आइये ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य जल और बिजुली को सिद्ध करते हैं, वे हरिण के सदृश शीघ्र जाने के योग्य हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अश्विना ! युवां हंसाविव सुतानुपाऽऽपततं यवसमनु हरिणाविव गौराविवाऽऽपततम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) यजमानर्त्विजौ (हरिणाविव) यथा हरिणौ धावतः (गौराविव) यथा गौरौ मृगौ धावतः (अनु) (यवसम्) सोमलताम् (हंसाविव) (पततम्) (आ) (सुतान्) निष्पन्नानैश्वर्य्यादीन् (उप) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये जलविद्युतौ साध्नुवन्ति ते हरिणवत्सद्यो गन्तुमर्हन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे जल व विद्युतचा वापर करतात ती हरिणाप्रमाणे शीघ्र गमन करतात. ॥ २ ॥