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प्रा॒तर्य॑जध्वम॒श्विना॑ हिनोत॒ न सा॒यम॑स्ति देव॒या अजु॑ष्टम्। उ॒तान्यो अ॒स्मद्य॑जते॒ वि चावः॒ पूर्वः॑पूर्वो॒ यज॑मानो॒ वनी॑यान् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prātar yajadhvam aśvinā hinota na sāyam asti devayā ajuṣṭam | utānyo asmad yajate vi cāvaḥ pūrvaḥ-pūrvo yajamāno vanīyān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रा॒तः। य॒ज॒ध्व॒म्। अ॒श्विना॑। हि॒नो॒त॒। न। सा॒यम्। अ॒स्ति॒। दे॒व॒ऽयाः। अजु॑ष्टम्। उ॒त। अ॒न्यः। अ॒स्मत्। य॒ज॒ते॒। वि। च॒। आवः॑। पूर्वः॑ऽपूर्वः। यज॑मानः। वनी॑यान् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:77» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग (प्रातः) प्रभातकाल में (अश्विना) सूर्य्य और उषा को (यजध्वम्) उत्तम प्रकार प्राप्त हूजिये और (हिनोत) वृद्धि कीजिये जहाँ (न) नहीं (सायम्) सन्ध्याकाल (अस्ति) है वहाँ जो (देवयाः) श्रेष्ठ गुण और विद्वानों को प्राप्त होनेवाले हैं उनका (अजुष्टम्) सेवन करिये और जो (अन्यः) अन्य (अस्मत्) हम लोगों से (यजते) मिलता है (च) और जो (वि, आवः) विशेष रक्षा करता है वह (उत) भी (पूर्वःपूर्वः) पहिला पहिला (यजमानः) यज्ञ करनेवाला (वनीयान्) अतिशय विभाग करनेवाला होता है, उसका भी सत्कार करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि प्रतिदिन रात्रि के चौथे शेष प्रहर में उठकर जैसे नियम से अन्तरिक्ष और पृथिवी वर्त्तमान हैं, वैसे वर्त्ताव करके सब की रक्षा करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यूयं प्रातरश्विना यजध्वं हिनोत यत्र न सायमस्ति तत्र मे देवयास्तानजुष्टं योऽन्योऽस्मद्यजते यश्च व्यावः स उत पूर्वःपूर्वो यजमानो वनीयान् भवति तमपि सत्कुरुत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रातः) प्रभातसमये (यजध्वम्) सङ्गच्छध्वम् (अश्विना) सूर्योषसौ (हिनोत) वर्धयत (न) निषेधे (सायम्) सन्ध्यासमयः (अस्ति) (देवयाः) ये देवान् दिव्यगुणान् विदुषो यान्ति (अजुष्टम्) सेवेध्वम् (उत) अपि (अन्यः) (अस्मत्) (यजते) सङ्गच्छते (वि) (च) (आवः) रक्षति (पूर्वःपूर्वः) आदिम आदिमः (यजमानः) यो यजते (वनीयान्) अतिशयेन विभाजकः ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः प्रत्यहं रात्रेश्चतुर्थे याम उत्थाय यथा नियमेन द्यावापृथिव्यौ वर्त्तेते तथा वर्त्तित्वा सर्वे रक्षितव्याः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी प्रत्येक दिवशी रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी उठून जसे अंतरिक्ष व पृथ्वी नियमाने चालतात तसे वागून सर्वांचे रक्षण करावे. ॥ २ ॥