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इ॒दं हि वां॑ प्र॒दिवि॒ स्थान॒मोक॑ इ॒मे गृ॒हा अ॑श्विने॒दं दु॑रो॒णम्। आ नो॑ दि॒वो बृ॑ह॒तः पर्व॑ता॒दाद्भ्यो या॑त॒मिष॒मूर्जं॒ वह॑न्ता ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idaṁ hi vām pradivi sthānam oka ime gṛhā aśvinedaṁ duroṇam | ā no divo bṛhataḥ parvatād ādbhyo yātam iṣam ūrjaṁ vahantā ||

पद पाठ

इ॒दम्। हि। वा॒म्। प्र॒ऽदिवि॑। स्थान॑म्। ओकः॑। इ॒मे। गृ॒हाः। अ॒श्वि॒ना॒। इ॒दम्। दु॒रो॒णम्। आ। नः॒। दि॒वः। बृ॒ह॒तः। पर्व॑तात्। आ। अ॒त्ऽभ्यः। या॒त॒म्। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। वह॑न्ता ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:76» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर गृहस्थों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दिवः) प्रकाश से (बृहतः) बड़े (पर्वतात्) मेघ और (अद्भ्यः) जलों से (इषम्) अन्न और (ऊर्जम्) पराक्रम को (आ) सब प्रकार से (वहन्ता) प्राप्त करनेवाले (अश्विना) स्त्रीपुरुषो ! (नः) हम लोगों को वा हम लोगों के (इदम्) इस (दुरोणम्) गृह को (आ) सब प्रकार से (यातम्) प्राप्त होओ (हि) जिससे (इदम्) यह (वाम्) आप दोनों के (प्रदिवि) उत्तम प्रकाश में (स्थानम्) स्थित होते हैं जिस में उस (ओकः) गृह को (इमे) ये (गृहाः) ग्रहण करनेवाले गृहस्थ जन प्राप्त होते हैं, उनको सब प्रकार से प्राप्त होओ ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो गृहस्थ जन गृहाश्रम के कर्म्मों को पूर्ण रीति से करते हैं, वे सब सुखों को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्गृहस्थैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे दिवो बृहतः पर्वतादद्भ्य इषमूर्जमाऽऽवहन्ताश्विना ! न इदं दुरोणमाऽऽयातं हीदं वां प्रदिवि स्थानमोक इमे गृहाः प्राप्नुवन्ति तानायातम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) (हि) यतः (वाम्) युवयोः (प्रदिवि) प्रकृष्टप्रकाशे (स्थानम्) तिष्ठन्ति यस्मिन् (ओकः) गृहम् (इमे) (गृहाः) ये गृह्णन्ति ते गृहस्थाः (अश्विना) स्त्रीपुरुषौ (इदम्) (दुरोणम्) गृहम् (आ) समन्तात् (नः) अस्मानस्माकं वा (दिवः) प्रकाशात् (बृहतः) महतः (पर्वतात्) मेघात् (आ) (अद्भ्यः) (यातम्) प्राप्नुतम् (इषम्) अन्नम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वहन्ता) ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये गृहस्था गृहाश्रमकर्माण्यलङ्कुर्वन्ति ते सर्वाणि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक गृहस्थाश्रमाचे कार्य पूर्ण करतात ते सर्व सुख प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥