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उ॒ता या॑तं संग॒वे प्रा॒तरह्नो॑ म॒ध्यंदि॑न॒ उदि॑ता॒ सूर्य॑स्य। दिवा॒ नक्त॒मव॑सा॒ शंत॑मेन॒ नेदानीं॑ पी॒तिर॒श्विना त॑तान ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

utā yātaṁ saṁgave prātar ahno madhyaṁdina uditā sūryasya | divā naktam avasā śaṁtamena nedānīm pītir aśvinā tatāna ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। आ। या॒त॒म्। स॒म्ऽग॒वे। प्रा॒तः। अह्नः॑। म॒ध्यंदि॑ने। उत्ऽइ॑ता। सूर्य॑स्य। दिवा॑। नक्त॑म्। अव॑सा। शम्ऽत॑मेन। न। इ॒दानी॑म्। पी॒तिः। अ॒श्विना॑। आ। त॒ता॒न॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:76» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) व्याप्तसुख स्त्रीपुरुषो ! तुम (अह्नः) दिवस के (मध्यन्दिने) मध्याह्न भाग में और (प्रातः) प्रभातसमय में (सूर्य्यस्य) सूर्यमण्डल के (उदिता) उदय होने में और दिन के (सङ्गवे) सायं समय में जिसमें गौएँ सङ्गत होतीं अर्थात् चर के आतीं (दिवा) दिन (नक्तम्) रात्रि (शन्तमेन) अत्यन्त सुख से (अवसा) रक्षा आदि के साथ (आ, यातम्) आओ (उत) और तुम दोनों की जो (पीतिः) पिआवट (आ, ततान) विस्तृत होती है उसको (इदानीम्) अब (न) नहीं नाश करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - किया विवाह जिन्होंने वे स्त्री-पुरुष प्रातः, मध्याह्न, सायं समयों में दिन-रात्रि को कल्याण करनेवाले कर्म्मों को सुखों से प्राप्त हों, कभी आलस्य मत करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अश्विना स्त्रीपुरुषौ ! युवमह्नो मध्यन्दिने प्रातः सूर्य्यस्योदिताऽह्नः सङ्गवे च दिवा नक्तं शन्तमेनावसा सहाऽऽयातम्। उत युवयोर्या पीतिराऽऽततान तामिदानीन्न हिंस्यातम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (आ) (यातम्) आगच्छतम् (सङ्गवे) सङ्गच्छन्ति गावो यस्मिन् सायं समये तस्मिन् (प्रातः) प्रभाते (अहः) दिवसस्य (मध्यन्दिने) मध्याह्ने (उदिता) उदिते (सूर्य्यस्य) (दिवा) दिवसे (नक्तम्) रात्रौ (अवसा) रक्षणादिना (शन्तमेन) अतिशयितेन सुखेन (न) (इदानीम्) (पीतिः) पानम् (अश्विना) व्याप्तसुखौ (आ) (ततान) आतनोति ॥३॥
भावार्थभाषाः - कृतविवाहाः स्त्रीपुरुषाः प्रातर्मध्यसायंसमयेष्वहर्निशं कल्याणकरैः कर्म्मभिः सुखानि प्राप्नुवन्तु कदाचिदालस्यं मा कुर्वन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विवाहित स्त्री-पुरुषांनी प्रातः मह्याह्रन, सायंकाळी दिवस-रात्र आनंदपूर्वक कल्याण करणारे कार्य करावे. कधी आळस करू नये. ॥ ३ ॥