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बो॒धिन्म॑नसा र॒थ्ये॑षि॒रा ह॑वन॒श्रुता॑। विभि॒श्च्यवा॑नमश्विना॒ नि या॑थो॒ अद्व॑याविनं॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bodhinmanasā rathyeṣirā havanaśrutā | vibhiś cyavānam aśvinā ni yātho advayāvinam mādhvī mama śrutaṁ havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बो॒धित्ऽम॑नसा। र॒थ्या॑। इ॒षि॒रा। ह॒व॒न॒ऽश्रुता॑। विऽभिः॑। च्यवा॑नम्। अ॒श्वि॒ना॒। नि। या॒थः॒। अद्व॑याविनम्। माध्वी॒ इति॑। मम॑। श्रु॒त॒म्। हव॑म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:75» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रथ्या) रथों में श्रेष्ठ (इषिरा) चलनेवाले (हवनश्रुता) आह्वान सुना गया जिनका और (बोधिन्मनसा) बोधित मन जिनका ऐसे (माध्वी) मधुर स्वभाववाले (अश्विना) विद्या के अध्यापक और उपदेशक ! आप दोनों (अद्वयाविनम्) द्वन्द्वभाव से रहित (विभिः) पक्षियों के साथ (च्यवानम्) पूँछते हुए को (नि) अत्यन्त (याथः) प्राप्त होते हैं और (मम) मेरे (हवम्) आह्वान को भी (श्रुतम्) सुनिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य शुद्ध अन्तःकरणवाले, प्राप्त हुई शिल्पविद्या जिनको ऐसे और कपटरहित होकर विद्यार्थियों के परीक्षक हैं, वे जगत् के मङ्गलकारक होते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे रथ्येषिरा हवनश्रुता बोधिन्मनसा माध्वी अश्विना ! युवामद्वयाविनं विभिश्च्यवानं नि याथो मम हवं च श्रुतम् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बोधिन्मनसा) बोधितं मनो ययोस्तौ (रथ्या) रथेषु साधू (इषिरा) गन्तारौ (हवनश्रुता) हवनं श्रुतं ययोस्तौ (विभिः) पक्षिभिस्सह (च्यवानम्) पृच्छन्तम् (अश्विना) विद्याऽध्यापकोपदेशकौ (नि) नितराम् (याथः) प्राप्नुथः (अद्वयाविनम्) इन्द्रभावरहितम् (माध्वी) (मम) (श्रुतम्) (हवम्) ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः शुद्धान्तःकरणाः प्राप्तशिल्पविद्या निष्कपटा विद्यार्थिनां परीक्षकाः सन्ति ते जगन्मङ्गलकरा भवन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे शुद्ध अंतःकरणयुक्त असून शिल्पविद्या प्राप्त करून निष्कपटी बनून विद्यार्थ्यांचे परीक्षक या नात्याने काम करतात ती माणसे जगाचे मंगल करणारी असतात. ॥ ५ ॥