वांछित मन्त्र चुनें

आ नो॒ रत्ना॑नि॒ बिभ्र॑ता॒वश्वि॑ना॒ गच्छ॑तं यु॒वम्। रुद्रा॒ हिर॑ण्यवर्तनी जुषा॒णा वा॑जिनीवसू॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no ratnāni bibhratāv aśvinā gacchataṁ yuvam | rudrā hiraṇyavartanī juṣāṇā vājinīvasū mādhvī mama śrutaṁ havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। रत्ना॑नि। बिभ्र॑तौ। अश्वि॑ना। गच्छ॑तम्। युवम्। रुद्रा॑। हिर॑ण्यवर्तनी॒ इति॒ हिर॑ण्यऽवर्तनी। जु॒षा॒णा। वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू। माध्वी॒ इति॑। मम॑। श्रु॒त॒म्। हव॑म् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:75» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजिनीवसू) अन्न आदि से युक्त सामग्री को वसाने और (हिरण्यवर्त्तनी) सुवर्ण वा ज्योति को वर्त्तानेवाले (रत्नानि) रमणीय धनों को (जुषाणा) सेवन और (बिभ्रतौ) धारण करते हुए (रुद्रा) दुष्टों को भय देनेवाले (अश्विना) विद्या से युक्त (माध्वी) मधुरस्वभाववालो ! (युवम्) आप दोनों (नः) हम लोगों को (आ) सब प्रकार से (गच्छतम्) प्राप्त होइये और (मम) मेरे (हवम्) आह्वान को (श्रुतम्) सुनिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - वे ही भाग्यशाली होवें, जो यथार्थवक्ता विद्वानों के समीप जाकर वा उनको बुलाकर प्रयत्न से विद्या का अभ्यास कर के परीक्षा देते हैं ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे वाजिनीवसू हिरण्यवर्त्तनी रत्नानि जुषाणा बिभ्रतौ रुद्राश्विना माध्वी ! युवं न आ गच्छतं मम हवं श्रुतम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (नः) अस्मान् (रत्नानि) रमणीयानि धनानि (बिभ्रतौ) धरन्तौ (अश्विनौ) विद्यायुक्तौ (गच्छतम्) (युवम्) युवाम् (रुद्रा) दुष्टानां भयङ्करौ (हिरण्यवर्त्तनी) यौ हिरण्यं ज्योतिर्वर्त्तेयातां तौ (जुषाणा) सेवमानौ (वाजिनीवसू) यौ वाजिनीमन्नादियुक्तां सामग्रीं वासयतस्तौ (माध्वी) मधुरस्वभावौ (मम) (श्रुतम्) (हवम्) ॥३॥
भावार्थभाषाः - त एव भाग्यशालिनो भवेयुर्य आप्तान् विदुष उपगम्याऽऽहूय वा प्रयत्नेन विद्याभ्यासं कृत्वा परीक्षां प्रददति ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वानांजवळ जाऊन त्यांना आमंत्रित करून प्रयत्नपूर्वक विद्येचा अभ्यास करून परीक्षा देतात तेच भाग्यवान असतात. ॥ ३ ॥