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प्रति॑ प्रि॒यत॑मं॒ रथं॒ वृष॑णं वसु॒वाह॑नम्। स्तो॒ता वा॑मश्विना॒वृषिः॒ स्तोमे॑न॒ प्रति॑ भूषति॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prati priyatamaṁ rathaṁ vṛṣaṇaṁ vasuvāhanam | stotā vām aśvināv ṛṣiḥ stomena prati bhūṣati mādhvī mama śrutaṁ havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रति॑। प्रि॒यऽत॑मम्। रथ॑म्। वृष॑णम्। व॒सु॒ऽवाह॑नम्। स्तो॒ता। वा॒म्। अ॒श्वि॒नौ॒। ऋषिः॑। स्तोमे॑न। प्रति॑। भू॒ष॒ति॒। माध्वी॒ इति॑। मम॑। श्रु॒त॒म्। हव॑म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:75» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव ऋचावाले पचहत्तरवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (माध्वी) मधुर आदि गुणों को प्राप्त करानेवाले (अश्विनौ) अध्यापक परीक्षक जनो ! जो (स्तोता) स्तुति करने और (ऋषिः) मन्त्र और अर्थ का जाननेवाला (स्तोमेन) स्तवन से (वाम्) आप दोनों के (प्रियतमम्) अत्यन्त प्रिय (वृषणम्) सुख के वर्षाने और (वसुवाहनम्) द्रव्यों के पहुँचानेवाले (रथम्) रमते हैं, जिससे उस विमान आदि वाहन को (प्रति, भूषति) शोभित करता है, उसके और (मम) मेरे (हवम्) बुलाने को (प्रति, श्रुतम्) सुनिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो अध्यापन और उपदेश करते हैं, वे योग्य समय में परीक्षा भी करें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे माध्वी अश्विनौ ! यः स्तोता ऋषिः स्तोमेन वां प्रियतमं वृषणं वसुवाहनं रथं प्रति भूषति तस्य मम च हवं प्रति श्रुतम् ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति) (प्रियतमम्) अतिशयेन प्रियम् (रथम्) रमते येन तद् विमानादियानम् (वृषणम्) सुखवर्षकम् (वसुवाहनम्) वसूनां द्रव्याणां वाहनम् (स्तोता) स्तावकः (वाम्) युवयोः (अश्विनौ) अध्यापकपरीक्षकौ (ऋषिः) मन्त्रार्थवेत्ता (स्तोमेन) स्तवनेन (प्रति) (भूषति) अलङ्करोति (माध्वी) मधुरादिगुणप्रापकौ (मम) (श्रुतम्) शृणुतम् (हवम्) ॥१॥
भावार्थभाषाः - येऽध्यापनोपदेशौ कुर्वन्ति ते यथासमयं परीक्षामपि कुर्य्युः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अश्विपदवाच्य विद्वान स्त्री-पुरुषांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जे अध्यापन व उपदेश करतात त्यांनी योग्य वेळी परीक्षा घ्यावी. ॥ १ ॥