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शमू॒ षु वां॑ मधूयुवा॒स्माक॑मस्तु चर्कृ॒तिः। अ॒र्वा॒ची॒ना वि॑चेतसा॒ विभिः॑ श्ये॒नेव॑ दीयतम् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śam ū ṣu vām madhūyuvāsmākam astu carkṛtiḥ | arvācīnā vicetasā vibhiḥ śyeneva dīyatam ||

पद पाठ

शम्। ऊँ॒ इति॑। सु। वा॒म्। म॒धु॒ऽयु॒वा॒। अ॒स्माक॑म्। अ॒स्तु॒। च॒र्कृ॒तिः। अ॒र्वा॒ची॒ना। वि॒ऽचे॒त॒सा॒। विऽभिः॑। श्ये॒नाऽइ॑व। दी॒य॒त॒म् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:74» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मधूयुवा) माधुर्य्य गुण से युक्त (विचेतसा) अनेक प्रकार के विज्ञानवाले (अर्वाचीना) सन्मुख चलते हुए दो जनो ! (वाम्) आप दोनों की जो (चर्कृतिः) अत्यन्त क्रिया है वह (अस्माकम्) हम लोगों की (अस्तु) हो जिससे आप दोनों (उ) ही (विभिः) पक्षियों के साथ (श्येनेव) वाज पक्षी के सदृश (शम्) सुख वा कल्याण को (सु, दीयतम्) उत्तम प्रकार देवें ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वे ही विद्वान् हैं, जो अपने ऐश्वर्य्य को अन्य जनों के सुख के लिये नियुक्त करते हैं, जैसे पक्षियों के साथ श्येन पक्षी शीघ्र चलता है, वैसे इनके साथ विद्यार्थी जन पूर्ण रीति से चलें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मधूयुवा विचेतसार्वाचीना वां युवयोर्या चर्कृतिरस्ति साऽस्माकमस्तु यतो युवामु विभिः श्येनेव शं सु दीयतम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शम्) सुखं कल्याणं वा (उ) (सु) (वाम्) युवयोः (मधूयुवा) माधुर्य्यगुणोपेतौ (अस्माकम्) (अस्तु) (चर्कृतिः) अत्यन्तक्रिया (अर्वाचीना) यावर्वागञ्चतस्तौ (विचेतसा) विविधविज्ञानौ (विभिः) पक्षिभिः सह (श्येनेव) श्येनः पक्षीव (दीयतम्) दद्यातम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । त एव विद्वांसो ये त्वैश्वर्य्यं परसुखार्थं नियोजयन्ति यथा पक्षिभिः सह श्येनः सद्यो गच्छति तथैभिः सह विद्यार्थिनः पूर्णं गच्छन्तु ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा श्येन पक्षी इतर पक्ष्यांबरोबर शीघ्र गतीने जातो तसे जे आपले ऐश्वर्य इतरांच्या सुखासाठी अर्पण करतात तेच खरे विद्वान असतात. विद्यार्थ्यांनी त्यांच्यासारखे वागावे. ॥ ९ ॥