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कं या॑थः॒ कं ह॑ गच्छथः॒ कमच्छा॑ युञ्जाथे॒ रथ॑म्। कस्य॒ ब्रह्मा॑णि रण्यथो व॒यं वा॑मुश्मसी॒ष्टये॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kaṁ yāthaḥ kaṁ ha gacchathaḥ kam acchā yuñjāthe ratham | kasya brahmāṇi raṇyatho vayaṁ vām uśmasīṣṭaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कम्। या॒थः॒। कम्। ह॒। ग॒च्छ॒थः॒। कम्। अच्छ॑। यु॒ञ्जा॒थे॒ इति॑। रथ॑म्। कस्य॑। ब्रह्मा॑णि। र॒ण्य॒थः॒। व॒यम्। वा॒म्। उ॒श्म॒सि॒। इ॒ष्टये॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:74» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्यों को क्या पूछना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! आप दोनों (कम्) किसको (याथः) प्राप्त होते हो और (कम्) किसको (गच्छथः) जाते हो (कम्) किस (रथम्) रमण करने योग्य वाहन को (अच्छा) उत्तम प्रकार (युञ्जाथे) युक्त होते हो और (कस्य) किसके (ह) निश्चय से (ब्रह्माणि) धन और धान्यों को (रण्यथः) रमाते हो (वयम्) हम लोग (इष्टये) इच्छा के लिये (वाम्) आप दोनों की (उश्मसि) कामना करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! विद्वान् जन जिसको प्राप्त होवें और युक्त होते तथा इच्छा करते हैं, उसी की आप लोग इच्छा करो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्यैः किं प्रष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! युवां कं याथः कं गच्छथः कं रथमच्छा युञ्जाथे कस्य ह ब्रह्माणि रण्यथो वयमिष्टये वामुश्मसि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कम्) (याथः) प्राप्नुथः (कम्) (ह) किल (गच्छथः) (कम्) (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (युञ्जाथे) (रथम्) रमणीयं यानम् (कस्य) (ब्रह्माणि) धनधान्यानि (रण्यथः) रमयथः (वयम्) (वाम्) युवाम् (उश्मसि) कामयेमहि (इष्टये) ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! विद्वांसो यं प्राप्नुयुर्युञ्जते वाञ्छन्ति तमेव यूयमपीच्छत ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या गोष्टी विद्वान लोक प्राप्त करतात, त्याबाबत इच्छा बाळगतात. त्यांचीच तुम्हीही इच्छा बाळगा ॥ ३ ॥