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अश्वि॑ना॒ यद्ध॒ कर्हि॑ चिच्छुश्रू॒यात॑मि॒मं हव॑म्। वस्वी॑रू॒ षु वां॒ भुजः॑ पृ॒ञ्चन्ति॒ सु वां॒ पृचः॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvinā yad dha karhi cic chuśrūyātam imaṁ havam | vasvīr ū ṣu vām bhujaḥ pṛñcanti su vām pṛcaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वि॑ना। यत्। ह॒। कर्हि॑। चि॒त्। शु॒श्रू॒यात॑म्। इ॒मम्। हव॑म्। वस्वीः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। वा॒म्। भुजः॑। पृ॒ञ्चन्ति॑। सु। वा॒म्। पृचः॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:74» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:14» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जनो ! (यत्) जो (कर्हि, चित्) कभी हम लोगों को (इमम्) इस वर्त्तमान (हवम्) प्रशंसा को (शुश्रूयातम्) प्राप्त होओ और जो (पृचः) कामना और (वस्वीः) धनसम्बन्धिनी (भुजः) भोग की क्रियाओं को (वाम्) आप दोनों के सम्बन्ध में (सु) उत्तम प्रकार (पृञ्चन्ति) सम्बन्धित करते हैं उनको (ह) निश्चय से (उ) और (वाम्) आप दोनों की हम लोग (सु) उत्तम प्रकार कामना करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् जन विद्यार्थियों की परीक्षा करते हैं, उनको विद्यार्थीजन विद्वान् होकर प्रसन्न करते हैं ॥१०॥ इस सूक्त में अध्यापक, उपदेशक और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौहत्तरवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे अश्विना ! यद्यौ कर्हि चिदिममस्माकं हवं शुश्रूयातं या पृचो वस्वीर्भुजो वां सुपृञ्चन्ति ता हो वां वयं सुपृञ्चेम ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (यत्) यौ (ह) किल (कर्हि) कदा (चित्) अपि (शुश्रूयातम्) प्राप्नुयातम् (इमम्) वर्त्तमानम् (हवम्) प्रशंसनम् (वस्वीः) धनसम्बन्धिनीः (उ) (सु) (वाम्) युवयोः (भुजः) भोगक्रियाः (पृञ्चन्ति) सम्बध्नन्ति (सु) शोभने (वाम्) युवयोः (पृचः) कामनाः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो विद्यार्थिनां परीक्षां कुर्वन्ति तान् विद्यार्थिनो विद्वांसो भूत्वा प्रीणयन्तीति ॥१०॥ अत्राश्विविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुःसप्ततितमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान विद्यार्थ्यांची परीक्षा घेतात ते विद्यार्थी विद्वान बनून त्यांना प्रसन्न करतात. ॥ १० ॥