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विश्व॑स्य॒ हि प्र॑चेतसा॒ वरु॑ण॒ मित्र॒ राज॑थः। ई॒शा॒ना पि॑प्यतं॒ धियः॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvasya hi pracetasā varuṇa mitra rājathaḥ | īśānā pipyataṁ dhiyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्व॑स्य। हि। प्र॒ऽचे॒त॒सा॒। वरु॑ण। मित्र॑। राज॑थः। ई॒शा॒ना। पि॒प्य॒त॒म्। धियः॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:71» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (प्रचेतसा) उत्तम ज्ञानवाले (ईशाना) समर्थ (वरुण) वर के देने और (मित्र) सब के सुख करनेवालो ! (विश्वस्य) संसार के मध्य में आप दोनों (राजथः) प्रकाशित होते हैं और (धियः) बुद्धियों को (हि) ही (पिप्यतम्) बढ़ाइये ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे अन्तरिक्ष में सूर्य्य और चन्द्रमा प्रकाशित होते हैं, वैसे मनुष्यों की बुद्धियों को बढ़ाइये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे प्रचेतसेशाना वरुण मित्र विश्वस्य मध्ये युवां राजथः धियो हि पिप्यतम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वस्य) संसारस्य (हि) यतः (प्रचेतसा) प्रकृष्टज्ञानौ (वरुण) वरप्रद (मित्र) सर्वसुखकारक (राजथः) (ईशाना) समर्थौ (पिप्यतम्) वर्धयेतम् (धियः) बुद्धीः ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथान्तरिक्षे सूर्य्याचन्द्रमसौ प्रकाशेते तथा जनानां बुद्धीर्वर्द्धयन्तु ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे अंतरिक्षात सूर्य व चंद्र प्रकाशित होतात. तशी माणसांची बुद्धी वाढवा. ॥ २ ॥