मा कस्या॑द्भुतक्रतू य॒क्षं भु॑जेमा त॒नूभिः॑। मा शेष॑सा॒ मा तन॑सा ॥४॥
mā kasyādbhutakratū yakṣam bhujemā tanūbhiḥ | mā śeṣasā mā tanasā ||
मा। कस्य॑। अ॒द्भुत॒क्र॒तू॒ इत्य॑द्भुतऽक्रतू। य॒क्षम्। भु॒जे॒म॒। त॒नूभिः॑। मा। शेष॑सा। मा। तन॑सा ॥४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
उत्तमों को किसी पुरुष से भी दान कभी न ग्रहण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
उत्तमैः कस्माच्चिदपि पुरुषाद्दानं कदाचिन्न ग्रहीतव्यमित्याह ॥
हे अद्भुतक्रतू ! वयं तनूभिः कस्यचिद्यक्षं मा भुजेम। शेषसा मा भुजेम तनसा मा भुजेम ॥४॥