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पा॒तं नो॑ रुद्रा पा॒युभि॑रु॒त त्रा॑येथां सुत्रा॒त्रा। तु॒र्याम॒ दस्यू॑न्त॒नूभिः॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pātaṁ no rudrā pāyubhir uta trāyethāṁ sutrātrā | turyāma dasyūn tanūbhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पा॒तम्। नः॒। रु॒द्रा॒। पा॒युऽभिः॑। उ॒त। त्रा॒ये॒था॒म्। सु॒ऽत्रा॒त्रा। तु॒र्याम॑। दस्यू॑न्। त॒नूभिः॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:70» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्रा) दुष्टों के रुलानेवाले सभा और सेना के स्वामी ! आप दोनों (सुत्रात्रा) उत्तम प्रकार पालन करनेवाले के साथ (पायुभिः) रक्षणों वा रक्षकों से (नः) हम लोगों का (पातम्) पालन करिये और (उत) भी (त्रायेथाम्) रक्षा कीजिये जिससे हम लोग (तनूभिः) शरीरों से (दस्यून्) दुष्ट चोरों का (तुर्याम) नाश करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सभा और सेना के स्वामी निरन्तर प्रजाओं की रक्षा करें, उन का रक्षण प्रजा करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे रुद्रा सभासेनेशौ ! युवां सुत्रात्रा सह पायुभिर्नः पातमुत त्रायेथाम् । यतो वयं तनूभिर्दस्यूंस्तुर्याम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पातम्) (नः) अस्मान् (रुद्रा) दुष्टानां रोदयितारौ (पायुभिः) रक्षणै रक्षकैर्वा (उत) अपि (त्रायेथाम्) (सुत्रात्रा) यः सुष्ठु त्रायते तेन (तुर्याम) हिंस्याम (दस्यून्) दुष्टान् स्तेनान् (तनूभिः) शरीरैः ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यौ सभासेनेशौ सततं प्रजा रक्षेतां तयो रक्षणं प्रजाः कुर्युः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जी सभा व सेनेचा स्वामी सतत प्रजेचे रक्षण करतात. त्यांचे प्रजेने रक्षण करावे. ॥ ३ ॥