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ता वां॑ स॒म्यग॑द्रुह्वा॒णेष॑मश्याम॒ धाय॑से। व॒यं ते रु॑द्रा स्याम ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā vāṁ samyag adruhvāṇeṣam aśyāma dhāyase | vayaṁ te rudrā syāma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। वा॒म्। स॒म्यक्। अ॒द्रु॒ह्वा॒णा॒। इष॑म्। अ॒श्या॒म॒। धाय॑से। व॒यम्। ते। रु॒द्रा॒। स्या॒म॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:70» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अद्रुह्वाणा) द्वेष से रहित (रुद्रा) रोदन से शब्द करानेवाले ! (वयम्) हम लोग (वाम्) आप दोनों के (धायसे) धारण करने को (इषम्) अन्न वा विज्ञान को (सम्यक्) उत्तम प्रकार (अश्याम) प्राप्त होवें (ते) वे हम लोग (ता) उन दोनों का सेवन करते हुए सब के धारण करने को (स्याम) होवें ॥२॥
भावार्थभाषाः - वे ही अध्यापक और उपदेशक कृतक्रिय होवें, जो क्रोध और लोभ आदि दोषों से रहित होवें और जो उनसे पढ़ते हैं, वे विद्या के धारण में प्रयत्न करते हुए होवें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अद्रुह्वाणा रुद्रा ! वयं वां धायस इष सम्यगश्याम ते वयं ता सेवन्तः सर्वस्य धायसे स्याम ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (वाम्) युवयोः (सम्यक्) (अद्रुह्वाणा) द्रोहरहितौ (इषम्) अन्नं विज्ञानं वा (अश्याम) प्राप्नुयाम (धायसे) धर्त्तुम् (वयम्) (ते) (रुद्रा) रुतो रोदनाद्रावयितारौ (स्याम) भवेम ॥२॥
भावार्थभाषाः - तावेवाध्यापकोपदेशकौ कृतक्रियौ भवतां यौ क्रोधलोभादिविरहौ स्यातां ये ताभ्यामधीयते ते विद्याधारणे प्रयतमानाः स्युः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे क्रोध, लोभ इत्यादी रहित असतात व जे त्यांच्याकडून शिकण्याचा प्रयत्न करतात तेच अध्यापक व उपदेशक कृतक्रिय असतात. ॥ २ ॥