वांछित मन्त्र चुनें

यं मर्त्यः॑ पुरु॒स्पृहं॑ वि॒दद्विश्व॑स्य॒ धाय॑से। प्र स्वाद॑नं पितू॒नामस्त॑तातिं चिदा॒यवे॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yam martyaḥ puruspṛhaṁ vidad viśvasya dhāyase | pra svādanam pitūnām astatātiṁ cid āyave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम्। मर्त्यः॑। पु॒रु॒ऽस्पृह॑म्। वि॒दत्। विश्व॑स्य। धाय॑से। प्र। स्वाद॑नम्। पि॒तू॒नाम्। अस्त॑ऽतातिम्। चि॒त्। आ॒यवे॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:7» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मर्त्यः) मनुष्य (आयवे) मनुष्य के लिये और (विश्वस्य) संसार के (धायसे) धारण के लिये (यम्) जिस (पुरुस्पृहम्) बहुतों से प्रशंसा करने योग्य (पितूनाम्) अन्नों के (स्वादनम्) स्वाद और (अस्ततातिम्) गृहस्थ को (चित्) भी (प्र, विदत्) प्राप्त होवे, उसको परोपकार के लिये धारण करे ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य को जिस उत्तम वस्तु और ज्ञान की प्राप्ति होवे, उस उसको सब के सुख के लिये धारण करे ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

मर्त्य आयवे विश्वस्य धायसे यं पुरुस्पृहं पितूनां स्वादनमस्ततातिं चित्प्र विदत्तं सर्वोपकाराय दध्यात् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) (मर्त्यः) (पुरुस्पृहम्) बहुभिः स्पर्हणीयम् (विदत्) लभेत (विश्वस्य) जगतः (धायसे) धारणाय (प्र) (स्वादनम्) (पितूनाम्) अन्नानाम् (अस्ततातिम्) गृहस्थम् (चित्) (आयवे) मनुष्याय ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्येण यद्यदुत्तमं वस्तु ज्ञानं च लभ्येत तत्तत्सर्वेषां सुखाय दध्यात् ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांना ज्या ज्या उत्तम वस्तू व ज्ञान प्राप्त होते ते सर्वांच्या सुखासाठी द्यावे. ॥ ६ ॥