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अधा॒ हि काव्या॑ यु॒वं दक्ष॑स्य पू॒र्भिर॑द्भुता। नि के॒तुना॒ जना॑नां चि॒केथे॑ पूतदक्षसा ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhā hi kāvyā yuvaṁ dakṣasya pūrbhir adbhutā | ni ketunā janānāṁ cikethe pūtadakṣasā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध॑। हि। काव्या॑। यु॒वम्। दक्ष॑स्य। पूः॒ऽभिः। अ॒द्भुता॒। नि। के॒तुना॑। जना॑नाम्। चि॒केथे॒ इति॑। पू॒त॒ऽद॒क्ष॒सा॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:66» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! (पूतदक्षसा) पवित्र बल जिनका ऐसे (युवम्) आप दोनों (केतुना) बुद्धि से (अद्भुता) आश्चर्य्यरूप (काव्या) कवियों के कर्म्मों को (चिकेथे) जानते हैं (अधा) इसके अनन्तर (हि) जिससे (जनानाम्) मनुष्यों के (दक्षस्य) बलसम्बन्धी (पूर्भिः) नगरों से (नि) निरन्तर करके जानते हैं, उनका हम लोग सदा सत्कार करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को यह योग्य है कि स्वयं पूर्ण विद्वान् होके अज्ञजनों को अध्यापन और उपदेश से उपकृत करें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! पूतदक्षसा युवं केतुनाऽद्भुता काव्या चिकेथे अधा हि जनानां दक्षस्य पूर्भिर्नि चिकेथे तौ वयं सदा सत्कुर्याम ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अधा) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) यतः (काव्या) कवीनां कर्माणि (युवम्) युवाम् (दक्षस्य) बलस्य (पूर्भिः) नगरैः (अद्भुता) आश्चर्य्यरूपाणि (नि) (केतुना) प्रज्ञया (जनानाम्) मनुष्याणाम् (चिकेथे) जानीथः (पूतदक्षसा) पूतं पवित्रं दक्षो बलं ययोस्तौ ॥४॥
भावार्थभाषाः - विदुषामिदं योग्यमस्ति यत्स्वयं पूर्णा विद्वांसो भूत्वाऽज्ञजनानध्यापनोपदेशाभ्यामुपकृतान् कुर्य्युः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी स्वतः पूर्ण विद्वान बनून अज्ञानी लोकांना शिक्षण व उपदेश यांनी उपकृत करावे. ॥ ४ ॥