आ चि॑कितान सु॒क्रतू॑ दे॒वौ म॑र्त रि॒शाद॑सा। वरु॑णाय ऋ॒तपे॑शसे दधी॒त प्रय॑से म॒हे ॥१॥
ā cikitāna sukratū devau marta riśādasā | varuṇāya ṛtapeśase dadhīta prayase mahe ||
आ। चि॒कि॒ता॒न॒। सु॒क्रतू॒ इति॑ सु॒ऽक्रतू॑। दे॒वौ। म॒र्त॒। रि॒शाद॑सा। वरु॑णाय। ऋ॒तऽपे॑शसे। द॒धी॒त। प्रय॑से। म॒हे ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः ऋचावाले छासठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र मे मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्यः किं कुर्य्यादित्याह ॥
हे चिकितान मर्त्त ! भवानृतपेशसे प्रयसे महे वरुणाय रिशादसा सुक्रतू देवावा दधीत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात मित्र व श्रेष्ठ विद्वान तसेच विदुषी स्त्रीच्या गुणवर्णनामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.