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मा॒या वां॑ मित्रावरुणा दि॒वि श्रि॒ता सूर्यो॒ ज्योति॑श्चरति चि॒त्रमायु॑धम्। तम॒भ्रेण॑ वृ॒ष्ट्या गू॑हथो दि॒वि पर्ज॑न्य द्र॒प्सा मधु॑मन्त ईरते ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

māyā vām mitrāvaruṇā divi śritā sūryo jyotiś carati citram āyudham | tam abhreṇa vṛṣṭyā gūhatho divi parjanya drapsā madhumanta īrate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा॒या। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। दि॒वि। श्रि॒ता। सूर्यः॑। ज्योतिः॑। च॒र॒ति॒। चि॒त्रम्। आयु॑धम्। तम्। अ॒भ्रेण॑। वृ॒ष्ट्या। गू॒ह॒थः॒। दि॒वि। पर्ज॑न्य। द्र॒प्साः। मधु॑ऽमन्तः। ई॒र॒ते॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:63» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के सदृश वर्त्तमान राजा और मन्त्रीजनो ! (वाम्) आप दोनों की (दिवि) बिजुली में (श्रिता) आश्रित (माया) बुद्धि (सूर्य्यः) सूर्य्य के सदृश जिस (ज्योतिः) प्रकाश रूप (चित्रम्) अद्भुत (आयुधम्) युद्ध करते हैं जिससे उस शस्त्र को (चरति) प्राप्त होती है (तम्) उसको (अभ्रेण) मेघ से और (वृष्ट्या) वृष्टि से (गूहथः) घेरते हो, हे (पर्जन्य) मेघ के समान वर्तमान जन ! (दिवि) सूर्य्य के प्रकाश में (मधुमन्तः) बहुत मधुर कर्म्म विद्यमान जिनके वे (द्रप्साः) विमोह के करनेवाले (ईरते) चलते वा कंपते हैं, वैसे आप जानिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो राजा और मन्त्री जन सूर्य्य और चन्द्रमा के सदृश तीव्र और शान्तस्वभाववाले, बुद्धिमान्, वृष्टि के सदृश प्रजाओं का पालन करते हैं, वे सब काल में सुख की वृद्धि करते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मित्रावरुणा ! या वां दिवि श्रिता माया सूर्य्यइव यं ज्योतिश्चित्रमायुधं चरति तमभ्रेण वृष्ट्या गूहथो हे पर्जन्य ! दिवि मधुमन्तो द्रप्सा ईरते तथा यूयं विजानीत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (माया) प्रज्ञा (वाम्) युवयोः (मित्रावरुणा) प्राणोदानवद्राजामात्यौ (दिवि) विद्युति (श्रिता) (सूर्य्यः) सवितेव (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूपम् (चरति) गच्छति (चित्रम्) अद्भुतम् (आयुधम्) आयुध्यन्ति येन तत् (तम्) (अभ्रेण) घनेन (वृष्ट्या) (गूहथः) संवृणुथः (दिवि) सूर्य्यप्रकाशे (पर्जन्य) मेघ इव वर्त्तमान (द्रप्साः) विमोहकारकाः (मधुमन्तः) बहूनि मधुराणि कर्माणि विद्यन्ते येषान्ते (ईरते) गच्छन्ति कम्पन्ते वा ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये राजाऽमात्याः सूर्य्यचन्द्रवत्तीव्रशान्तस्वभावा मेधाविनो वृष्टिवत्प्रजाः पालयन्ति ते सर्वदा सुखमुन्नयन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजा व मंत्रीलोक सूर्य व चंद्राप्रमाणे तीव्र आणि शांत स्वभावाचे, बुद्धिमान, वृष्टीप्रमाणे प्रजेचे पालन करतात ते सदैव सुख वाढवितात. ॥ ४ ॥