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तत्सु वां॑ मित्रावरुणा महि॒त्वमी॒र्मा त॒स्थुषी॒रह॑भिर्दुदुह्रे। विश्वाः॑ पिन्वथः॒ स्वस॑रस्य॒ धेना॒ अनु॑ वा॒मेकः॑ प॒विरा व॑वर्त ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tat su vām mitrāvaruṇā mahitvam īrmā tasthuṣīr ahabhir duduhre | viśvāḥ pinvathaḥ svasarasya dhenā anu vām ekaḥ pavir ā vavarta ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। सु। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। म॒हि॒ऽत्वम्। ई॒र्मा। त॒स्थुषीः॑। अह॑ऽभिः। दु॒दु॒ह्रे॒। विश्वाः॑। पि॒न्व॒थः॒। स्वस॑रस्य। धेनाः॑। अनु॑। वा॒म्। एकः॑। प॒विः। आ। व॒व॒र्त॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:62» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मित्रावरुण के गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्रावरुणा) प्राण और उदान वायु के सदृश अध्यापक और उपदेशक जनो ! (वाम्) आप दोनों के जिस (महित्वम्) महत्त्व की (ईर्मा) निरन्तर चलनेवाला रक्षा करता है (तत्) उसकी आप दोनों (पिन्वथः) तृप्ति कीजिये और जैसे (अहभिः) दिनों से किरणें (तस्थुषीः) स्थिर वेलाओं को (सु) उत्तम प्रकार (दुदुह्रे) पूर्ण करते हैं और (स्वसरस्य) दिन के मध्य में (वाम्) आप दोनों (विश्वाः) सम्पूर्ण (धेनाः) वाणियों को तृप्त कीजिये वैसे (एकः) सहायरहित केवल एक (पविः) पवित्र व्यवहार (अनु) अनुकूल (आ) (ववर्त) वर्तमान हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! आप दोनों मनुष्यों को रात्रि-दिन, प्राण, उदान और बिजुली की विद्याओं को ग्रहण कराइये, जिससे सम्पूर्ण प्रजायें आनन्दित होवें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मित्रावरुणगुणानाह ॥

अन्वय:

हे मित्रावरुणा ! वां यन्महित्वमीर्मा रक्षति तद्युवां पिन्वथो यथाऽहभिः किरणास्तस्थुषीः स दुदुह्रे स्वसरस्य मध्ये वां विश्वा धेनाः पिन्वथस्तथैकः पविरन्वाऽऽववर्त्त ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) (सु) ( (वाम्) युवयोः (मित्रावरुणा) प्राणोदानवदध्यापकोपदेशकौ (महित्वम्) महत्त्वम् (ईर्मा) (तस्थुषीः) स्थिराः (अहभिः) दिनैः (दुदुह्रे) प्रपूरयन्ति (विश्वाः) सर्वाः (पिन्वथः) प्रीणयतम् (स्वसरस्य) दिनस्य (धेनाः) वाचः (अनु) (वाम्) युवाम् (एकः) असहायः (पविः) पवित्रो व्यवहारः (आ) (ववर्त्त) ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकौ ! युवां मनुष्यान् रात्र्यहर्प्राणोदानविद्युद्विद्या ग्राहयतं यतः सर्वाः प्रजा आनन्दिताः स्युः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक व उपदेशकांनो! तुम्ही दोघे सर्व माणसांना दिवस, रात्र, प्राण, उदान व विद्युत विद्या शिकवा. ज्यामुळे संपूर्ण प्रजा आनंदित व्हावी. ॥ २ ॥