उ॒त मे॑ऽरपद्युव॒तिर्म॑म॒न्दुषी॒ प्रति॑ श्या॒वाय॑ वर्त॒निम्। वि रोहि॑ता पुरुमी॒ळ्हाय॑ येमतु॒र्विप्रा॑य दी॒र्घय॑शसे ॥९॥
uta me rapad yuvatir mamanduṣī prati śyāvāya vartanim | vi rohitā purumīḻhāya yematur viprāya dīrghayaśase ||
उ॒त। मे॒। अ॒र॒प॒त्। यु॒व॒तिः। म॒म॒न्दुषी॑। प्रति॑। श्या॒वाय॑। व॒र्त॒निम्। वि। रोहि॑ता। पु॒रु॒ऽमी॒ळ्हाय॑। ये॒म॒तुः॒। विप्रा॑य। दी॒र्घऽय॑शसे ॥९॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर स्त्री-पुरुष के विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्दम्पतीविषयमाह ॥
या प्रति श्यावाय पुरुमीळ्हाय दीर्घयशसे विप्राय मे ममन्दुषी वर्त्तनिं वि रोहिता युवतिररपदुताहमरपं तावावां यथा सद्गुणाढ्यौ स्त्रीपुरुषौ येमतुस्तथा वर्त्तावहै ॥९॥