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उ॒त मे॑ऽरपद्युव॒तिर्म॑म॒न्दुषी॒ प्रति॑ श्या॒वाय॑ वर्त॒निम्। वि रोहि॑ता पुरुमी॒ळ्हाय॑ येमतु॒र्विप्रा॑य दी॒र्घय॑शसे ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta me rapad yuvatir mamanduṣī prati śyāvāya vartanim | vi rohitā purumīḻhāya yematur viprāya dīrghayaśase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। मे॒। अ॒र॒प॒त्। यु॒व॒तिः। म॒म॒न्दुषी॑। प्रति॑। श्या॒वाय॑। व॒र्त॒निम्। वि। रोहि॑ता। पु॒रु॒ऽमी॒ळ्हाय॑। ये॒म॒तुः॒। विप्रा॑य। दी॒र्घऽय॑शसे ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री-पुरुष के विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (प्रति, श्यावाय) धूमिल वर्ण से युक्त अश्व और (पुरुमीळ्हाय) बहुत वीर्य्य के सींचनेवाले (दीर्घयशसे) बड़े यशस्वी (विप्राय) बुद्धिमान् (मे) मेरे लिये (ममन्दुषी) प्रशंसा करने योग्य और आनन्द करनेवाली (वर्त्तनिम्) मार्ग को (वि, रोहिता) जानेवाली (युवतिः) यौवनावस्था को प्राप्त स्त्री (अरपत्) स्पष्ट उपदेश देती है (उत) और मैं स्पष्ट उपदेश करूँ, वे हम दोनों जैसे श्रेष्ठ गुणों से युक्त स्त्री और पुरुष (येमतुः) नियम करते हैं, वैसे वर्त्ताव करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री-पुरुष परस्पर तुल्य गुण, कर्म और स्वभाववाले हों तो श्रेष्ठ मार्ग, अत्यन्त कीर्त्ति और आनन्द को प्राप्त हों ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्दम्पतीविषयमाह ॥

अन्वय:

या प्रति श्यावाय पुरुमीळ्हाय दीर्घयशसे विप्राय मे ममन्दुषी वर्त्तनिं वि रोहिता युवतिररपदुताहमरपं तावावां यथा सद्गुणाढ्यौ स्त्रीपुरुषौ येमतुस्तथा वर्त्तावहै ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (मे) मह्यम् (अरपत्) व्यक्तमुपदिशति (युवतिः) प्राप्तयौवनावस्था (ममन्दुषी) प्रशंसनीयानन्दकरी (प्रति) (श्यावाय) श्याववर्णयुक्तायाऽश्वाय (वर्त्तनिम्) मार्गम् (वि) (रोहिता) रोहणकर्त्री (पुरुमीळ्हाय) बहुवीर्यसेक्त्रे (येमतुः) नियच्छतः (विप्राय) मेधाविने (दीर्घयशसे) महद्यशसे ॥९॥
भावार्थभाषाः - यदि स्त्रीपुरुषौ तुल्यगुणकर्म्मस्वभावौ स्यातां तर्हि सन्मार्गं बृहत्कीर्त्तिमानन्दञ्च लभेताम् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर स्त्री-पुरुष परस्पर सारख्या गुणकर्म स्वभावाचे असतील तर श्रेष्ठ मार्ग अनुसरून महान कीर्ती व आनंद प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥