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वि या जा॒नाति॒ जसु॑रिं॒ वि तृष्य॑न्तं॒ वि का॒मिन॑म्। दे॒व॒त्रा कृ॑णु॒ते मनः॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi yā jānāti jasuriṁ vi tṛṣyantaṁ vi kāminam | devatrā kṛṇute manaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। या। जा॒नाति॑। जसु॑रिम्। वि। तृष्य॑न्तम्। वि। का॒मिन॑म्। दे॒व॒ऽत्रा। कृ॒णु॒ते। मनः॑ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (या) जो (जसुरिम्) प्रयत्न करते हुए को (वि) विशेष करके (जानाति) जानती है (तृष्यन्तम्) पिपासा से व्याकुल हुए के तुल्य को (वि) विशेष करके जानती है और (कामिनम्) कामातुर पुरुष को (वि) विशेष करके जानती है वह (देवत्रा) विद्वानों में (मनः) चित्त (कृणुते) करती है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री पुरुषार्थी, धार्मिक, लोभी और कामातुर पति को जानकर दोषों के निवारण और गुणों के ग्रहण करने के लिये प्रेरणा करती है, वही पति आदि की कल्याण करनेवाली होती है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या जसुरिं वि जानाति तृष्यन्तं वि जानाति कामिनं वि जानाति सा देवत्रा मनः कृणुते ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) विशेषेण (या) (जानाति) (जसुरिम्) प्रयतमानम् (वि) (तृष्यन्तम्) तृषातुरमिव (वि) (कामिनम्) कामातुरम् (देवत्रा) देवेषु (कृणुते) करोति (मनः) चित्तम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - या स्त्री पुरुषार्थिनं धार्मिकं लोभिनं कामातुरं च पतिं विज्ञाय दोषनिवारणाय गुणग्रहणाय च प्रेरयति सैव पत्यादिकल्याणकारिणी भवति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी स्त्री पुरुषार्थी, धार्मिक असते. ती लोभी व कामातूर पतीला जाणून दोषांचे निवारण व गुणांचा स्वीकार करण्याची प्रेरणा देते तीच पतीचे कल्याण करणारी असते. ॥ ७ ॥